ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Tuesday, September 10, 2019

बनास जन" अंक 32 में यात्रा वृतान्त ‘नर्मदे हर’

"बनास जन" अंक 32 में यात्रा वृतान्त ‘नर्मदे हर’ पर समालोचक डाॅ दुगाप्रसाद अग्रवाल जी ने अपनी समीक्षात्मक दीठ दी है। 

"...इन यात्रा वृतान्तों में जिस बात पर सबसे पहले ध्यान जाता है वह यह है कि वे जहाॅं भी जाते हैं उस स्थान को पूरी तरह आत्मसात कर लेते हैं और फिर वे जो लिखते हैं वह उस स्थान का मात्र पर्यटकीय वर्णन नहीं होकर उस स्थान से उनके भीतर उत्पन्न होने वाली काव्यात्मक और कुछ कुछ आध्यात्मिक अनुभूतियों की सरस अभिव्यक्ति होती है। बल्कि सच तो यह है वे पर्यटक वर्णन से भरसक बचने का प्रयत्न करते हैं। ...असल में यात्रा वृतान्त विधा में यह किताब इस मामले में अनूठी है कि यहां स्थान विशेष के पूरे माहौल जो अकथनीय मौजूद होता है उसे पहचानने, पकडने और अभिव्यक्त करने का अनूठा प्रयास है।...राजेश व्यास ने अपने गद्य को भी एक भिन्न सांचे में ढाला है, और उनके गद्य का अनूठापन उनके वृतान्तों को और अधिक आकर्षक बनाता है।..."




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