ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Tuesday, September 10, 2019

राजस्थान पत्रिका, रविवारीय में "नर्मदे हर’"

राजस्थान पत्रिका, दिनांक 8 सितम्बर 2019  रविवारीय में - यात्रा वृतान्त ‘नर्मदे हर’ पर दीपक मंजुल की यह समीक्षा।

"डाॅ. राजेश कुमार व्यास की सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘नर्मदे हर’ सुंदर, समृद्ध यात्राओं का चमकीला-महकीला एक जीवंत दस्तावेज है। इस यात्रा वृतान्त में स्थानों और प्रकृति के सौंदर्य को शब्द-शब्द सहेजा गया है। ...यह लेखक के आँखों देखे का ऐसा जीवंत विवरण और चित्रण है कि पढ़कर ही लगता है, हमने भी उनके संग यात्रा कर ली है। ...एक सुंदर और अच्छे यात्रा वृत्तांत में उस स्थल का इतिहास, भूगोल और साहित्य, संस्कृति, कला के रूप में एक पूरा जीवन धड़कना चाहिए। लेखक डाॅ. राजेश कुमार व्यास के ‘नर्मदे हर’ यात्रा वृतान्त में ऐसा ही हुआ है।"

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