ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Thursday, May 5, 2022

भारतीय लेखक प्रतिनिधिमंडल में पेरिस यात्रा

भारतीय लेखक प्रतिनिधिमंडल में पिछले दिनों फ्रांस की राजधानी पेरिस की यादगार यात्रा में निरंतर यह महसूस किया कि अपनी संस्कृति, सभ्यता और भाषा के प्रति वहां के लोगों को अथाह प्यार है।


भाषा के प्रति तो इस कदर अभिमान भी है कि वह इतर भाषा में संवाद से लगभग परहेज ही करते हैं। अतीत से प्यार करते आधुनिकता में रचे-बसे फ्रांस के लोगों में साहित्य और कलाओं से विरल अनुराग है।

लूव्र संग्रहालय हो या फिर दूसरे और भी संग्रहालय—छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों की लम्बी कतार टिकट क्रय कर उन्हें देखने लालायित दिखी। ऐसे ही जिस 'पेरिस बुक फेअर—2022' में हम मेहमान थे, वहां भी पुस्तकों और साहित्य से जुड़े विविध सत्रों में अपार जनसमूह जैसे उमड़ पड़ा था।

पेरिस बुक फेयर—2022 : यात्रा वृतान्त का वाचन

भारतीय पवेलियन में अपने यात्रा वृतांत का पाठ किया। इसके साथ ही भारतीय और फ्रेंच भाषा के लेखन से जुड़ी विविधता, संस्कृत और संस्कृति की जीवंतता के साथ ही सामयिक भारतीय लेखन से जुड़े सरोकारों के समूह—सत्रों में भी अपनी बात रखी।

घुमक्कड़ हूं सो एक दिन यूनेस्को धरोहर में सम्मिलित गांव प्रोविंस भी घूम आया।

इस यात्रा में वहां के हरे, पीले, धूसरित खेतों और नीले आसमानी रंगो के प्रकृति कैनवस से रू—ब—रू होते वॉन गॉग की कलाकृतियां भी बहुत याद आयी।

यादों का वातायन











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