ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, May 7, 2022

अतीत से प्यार करता आधुनिकता में रचा-बसा शहर पेरिस

 कलाकृतियां सौंदर्य के संसार से जोड़ते जीवन को गढ़ती है।  वहां जो कुछ दिखता है, वही नहीं, आंतरिक स्वरूप का सत्यान्वेषण अधिक महत्वपूर्ण होता है। इस देखे में इतिहास, दर्शन, मनोविज्ञान और पदार्थविज्ञान का थोड़ा-थोड़ा अध्ययन यदि हो तभी बहुत कुछ विरल हम पा सकते हैं। पेरिस के लुव्र संग्रहालय में इसे निंरतर अनुभूत किया। सीन नदी के किनारे कभी फ्रंास का राजमहल रहा ‘म्यूजे द लूव्र’ विश्वभर में सर्वाधिक देखा जाने वाला संग्रहालय है। इसे देखने का अर्थ है, पश्चिम के कला इतिहास की यात्रा करना। भारतीय लेखक प्रतिनिधिमंडल में संग्रहालय में संजोई ख्यात कलाकारों की उकेरी मूल कृतियों को देखते यह भी लगा, कलाकृतियों के प्रिंट बहुत से स्तरों पर आंखों को भरमाते है। मूल में जो रंग, रेखाओं और सतह से जुड़ी झंकार होती है, वह प्रिंट में कहां! 

यूजीन डेलाक्रोइक्स, वाॅन गाॅग, मातिस, माने, व्हिसलर, रेनोया, माने, लियोनार्डो दा विंची जैसे कितने ही कलाकारों की कलाकृतियों को एक दिन में देखना वहां संभव भी कहां है! एक माह भी शयद कम पड़े। कलाकृतियां ही नहीं, संग्रहालय का स्थापत्य भी अद्भुत है। यहीं लियोनार्डो द विंची की अपार लोकप्रिय ‘मोनालिसा' भी है। पर जब देखने पहुंचा तो निराशा हुई। लोग़ कलाकृति नहीं, उसके संग फोटो खिंचवाने में ही टूट पड़ रहे थे। लगा, मूल कलाकृति देखने की अनुभूति की बजाय अपने को उसके संग दिखाने की होड़ भी यहां आने वाली भीड़ का एक बड़ा कारण है।

राजस्थान पत्रिका, 7 मई 2022


बहरहाल, पेरिस भव्य है। एक रोज़ वर्साइल जाना हुआ तो देखा, वहां संग्रहालय देखने के लिए स्थानीय लोगों की लंबी कतार लगी हुई है। इसमें छोटे बच्चे और सुंदरता को निहारने की उत्सुकता, कौतुक ने भी लुभाया। फ्रांस में बाल्यकाल से ही कला शिक्षा जोर रहता है। बच्चों को इसीलिए संग्रहालय ले जाया जाता है कि उनमें छवि पहचानने, उसमें निहित सौंदर्य की संवेदना जग सके। मुझे लगता है, यह है तभी तो कि फ्रांस ने अपने कला इतिहास और स्थापत्य के अतीत को अभी भी सर्वथा नवीन बनाए रखा है। पेरिस भ्रमण के दौरान निंरतर यह भी अनुभूत किया यह शहर नहीं, कला रूपों एवं अभिव्यक्ति की मूलभूत प्रेरणाओं और उसमें हुए परिवर्तनों के इतिहास की अनूठी व्यंजना है।

‘लूर देफेल’ यानी एफिल टावर के पास ही एक होटल में हम रूके थे। सो रोज़ ही उसे देखने का सुयोग होता। कभी मेले के आकर्षण हेतु इसे एलेग्जेंडर गस्तेव एफिल ने बनाया था। बाद में इसकी स्थिरता और भव्यता ने इसे पेरिस का भव्य स्मारक बना दिया। लिफ्ट से दो मंजिल तक ऊपर पहुंच कर एक रोज़ देखा सिन नदी पेरिस के  ठीक बीच से होकर गुजरती किसी नहर सी है। ऊपर से देखेंगे तो नदी ही नहीं उस पर बने सुंदर पुल, अंदर तैरते पोत, सड़कें, महल, दूर कहीं चलती मेट्रो, चर्च के स्वर्ण गुम्बद, ग्रांड आर्च की मीनारें, महाद्वार, वृक्ष, वनस्पतियांे का सधा सांैदर्य सदा के लिए जैसे मन में बस जाता है।

पेरिस से कोई एक घंटे की दूरी पर स्थित  प्रोविंस गांव भी एक दिन जाना हुआ। रास्ते के खेतों के पीले, हरे और धूसर रंगो में रमते वाॅन गाॅग भी तब निरंतर याद आए। वहां बना बारहवीं सदी का दुर्ग, गुफा में बना प्राचीन निवास स्थान और अब संग्रहालय, स्थापत्य सौंदर्य का जैसे पाठ बंचाता है। गोथिक शैली में बनी इमारतें और गांव का वातावरण भी कम रमणीय नहीं है। और हां, पहाड़ी पर बसे उस गांव की ढ़लान उतरते खिलखिलाते बच्चों को भी तो कहां भूल पाया हूं! संग फोटो खिंचवाया तो शर्त थी-सोशल मीडिया पर साझा न करूं। पेरिस के बच्चे आधुनिकता में रचे-बसे हैं, पर दिखावे से परे हैं। लगा, अतीत से प्यार करते आधुनिकता में रचा-बसा पेरिस इसीलिए अपने कला-सौंदर्य को बरसों से ऐसे ही सहेजे हुए है।

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