अयोध्या में नव निर्मित मंदिर में कृष्ण शीला पर रामलला का विरल विग्रह है। मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगिराज ने इसे सिरजा है। राम का रम्य रूप! मंदिर में जब चक्षु उन्मीलन हुआ, मन राम के रुचिर नेत्रों में ही जैसे बस गया। निश्छल नेत्र! बाल सुलभ भावों की मनोहरी छवि। प्राण प्रतिष्ठा सांस्कृतिक अनुष्ठान है। मंदिर में पूजा मूर्ति की कहां होती है! यह ध्यान का ज्ञान है। राजस्थान पत्रिका—3 फरवरी, 2024
राम पुरुषोत्तम हैं। पुरूषों में उत्तम! वह सूर्यवंशी है। सूर्य की बारह कलाओं से युक्त। इसीलिए उनमें चेतना का सर्वोच्च स्तर है। वह विष्णु का पूर्णांश हैं। राम मंदिर में मूर्ति के मूल विग्रह के चारों ओर दशावतार है। केवल विष्णु ही हैं जिनके दस अवतार हुए। पृथ्वी पर मानवीय सभ्यता के विकास की जैसे यात्रा—गाथा।
पृथ्वी पर सबसे पहला जीव मछली था। इसलिए पहला अवतार-मत्स्य अवतार। दूसरा जो जीव आया वह जल और थल दोनों में वास कर सकता था। वह था—कछुआ। इसे कूर्मावतार कहा गया। अगला अवतार वराहवतार हुआ। इसके बाद मनुष्य और जीव—जंतुओं का समय आया। इसलिए मानव—सिंह का सम्मिलित रूप—नरसिंह अवतार हुआ। विकास का अगला चरण मनुष्य का बौना रूप था, इसलिए वामन अवतार हुआ। मानव का पहला हथियार कुल्हाड़ी था, इसका प्रमाण परशुराम अवतार में दिखता है। अगला महती अविष्कार तीर था। राम अवतार में राम को सबसे धनुर्धर—धुरंधर बताया गया है। हल के साथ बलराम अवतार विकास की अगली अवस्था है। इसके बाद जीवन में संगीत आया, इसलिए श्रीकृष्ण बांसुरी संग पूर्णावतार हुए। कहते हैं, बारहवा अवतार कल्कि का है जो अभी होना है।
महाभारत में युधिष्ठर भीष्म से प्रश्न करता है—वह एक ईश्वर कौन है? चरम लक्ष्य क्या है? परमपद कैसे प्राप्त हो सकता है? जवाब में भीष्म ने 107 पदों में एक—एक कर विष्णु के हजार नाम दुहराए। सुंदर काव्यांश में पार्वती शिव से प्रश्न करती है, 'इस सहस्त्रनाम माला का कोई ऐसा भी रूप है जिसका वही प्रभाव हो जो विष्णु सहस्नाम जप से होता है?' शिव तब कहते हैं-राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने। माने
'राम' का नाम जाप ही सहस्त्रनाम समान प्रभाव पैदा करने वाला है।
रामायण रामकथा नहीं, राम का अयन है। अयन माने गतिशीलता! सूर्य की स्थिति में साल में निरंतर परिवर्तन होता है। छ माह वह उत्तरायण होते है और छ महीने दक्षिणायन। सूर्य की इस अवस्था से ही ॠतुओं का निर्माण होता है। राम का संपूर्ण जीवन ऋतुओं की भांति गतिमान रहते जीवन जीने की कला-दृष्टि है। सूर्यवंशी राम अनथक गतिमान रहे हैं। बाल्यकाल में महर्षि विश्वामित्र की यज्ञ रक्षा के लिए वह चल पड़ते हैं। अयोध्या में राजभोग का अवसर आता है कि उन्हें वनवास की आज्ञा मिलती है। वह कहीं ठहरे नहीं
है। राम जीवन मूल्य है। इसीलिए कोई जब मूल्य—च्युत होता है, मुंह से औचक निकलता
है—राम निसरग्यौ।
रामायण के आदिकाण्ड के प्रथम सर्ग में वाल्मीकि अपने काव्य के उपयुक्त नायक की खोज करते हुए बहुत से गुणों का उल्लेख करते नारद से पूछते हैं कि किस नर का आश्रय लेकर समग्रा लक्ष्मी ने रूप ग्रहण किया, तब नारद कहते हैं कि ऐसा गुण युक्त पुरूष देवताओं में तो मुझे कोई दिखाई नहीं पड़ता। इसलिए जिन नर—चंद्रमा में ये सब गुण है, उन अलौकिक राम का ही मनोहारी चित्रण वाल्मीकि ने अपने काव्य में किया है। तुलसी के राम का सौंदर्य उनकी काया में, बल में, गुणों में है। रामचरितमानस लिखते
हुए तुलसी की कामना है, 'यह जो रूप कहीं पृथ्वी पर उतर आए तो पृथ्वी पर कैसा आनंद छा जाए!' अमृतलाल नागर के 'मानस का हंस' में आता है, मंदिर पर बाबरी मस्जिद बनने के बाद वहां सूफी संत जायसी की पद्मावत कथा सुनते ही उन्होंने तय किया था कि वह रामकथा लिखेंगे तो जनभाषा में, दोहों में। रामचरितमानस राम के अलौकिक, आनंदमयी स्वरूप का वही सुमधुर
गान है! राम की मनोहारी छवि।
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