ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, October 19, 2024

आलोक छुए अपनेपन के रुद्र वीणा स्वर


ध्रुवपद भारतीय संगीत—संस्कृति का अभिज्ञान है। अभिज्ञान माने संगीत की हमारी परम्परा की पहचान। जयपुर ध्रुवपद का तीर्थ—स्थल है। यहीं डागर घराने के पितामह बाबा बेहराम खान की चौखट है। कभी यहां अखिल भारतीय ध्रुवपद समारोह होता रहा है। यह आयोजन तो इस समय नहीं होता परन्तु संस्कृतिकर्मी इकबाल खान की पहल पर कुछ दिन पहले जवाहर कला केन्द्र में दो दिवसीय ध्रुवपद उत्सव हुआ। गायन—वादन प्रस्तुतियों के साथ ही इसमें ध्रुवपद पर संवाद भी हुआ।  विश्वप्रसिद्ध रुद्र वीणा वादक ज्योति हेगड़े को सुनने, बतियाने का भी इस दौरान संयोग हुआ। अरसा पहले उनकी वीणा सुनी थी। फिर से सुना तो लगा, तार वाद्य में नाद—ब्रह्म से साक्षात् हुआ है। 

रुद्र वीणा माने शिव का वाद्य। आदि ध्वनि से जुड़ी है- रुद्र वीणा। शिव समय को संबोधित हैं। महाकाल माने उत्पत्ति, स्थिति और लय के अधिपति। कथा आती है, मां पार्वती सो रही थी। शिव ने उन्हें वक्ष स्थल पर हाथ रखकर लेटे देखा। जगत जननी की चढ़ती—उतरती सांस और लेटने की मुद्रा के पवित्र सौंदर्य पर रीझते उन्होंने रुद्र वीणा का आविष्कार कर दिया। शिव का यह प्रिय वाद्य है। कल्पना करता हूं, भगवान शिव रुद्र वीणा बजाते हैं और इसमें निहित ब्रह्मांडीय कंपन और दिव्य लय में इसका जैसे सार समझाते हैं। रुद्र वीणा में वह पारलौकिक ध्वनियों के जरिए ही सृजन, स्थिति और संहार को प्रतिध्वनित करते हैं। 

उस दौर में जब रुद्र वीणा महिलाओं के लिए सर्वथा त्याज्य था, ज्योति हेगड़े ने इसी में अपने को साधा। आरंभ में वह गुरु बिन्दु माधव माधव से सितार सीखती थी। एक रोज़ उन्हें रूद्रवीणा बजाते सुना। वीणा के तार से उनका मन इस कदर झंकृत हुआ कि उन्होंने इसे सीखने का निर्णय कर लिया। गुरु ने मना कर दिया। कहा, लड़कियों के लिए यह नहीं है। इसमें अतिरिक्त ताकत की जरूरत पड़ती है। ज्योति ने जिद पकड़ ली तो उन्होंने एक पुरानी न बज सकने वाली रुद्र वीणा परीक्षण के लिए दी। वह लगातार बारह घंटे इसे बजाती रही। घर वालो ने कहा, ग्रामोफोन की सुई अटक गई है। उनकी मां ने जब थॉमस की 'द वे म्यूजिक' में रुद्र वीणा के संबंध में यह लिखा हुआ पढ़ा-सुना कि इसे बजाने वाली महिला कभी मां नहीं बन सकती तो उन्होंने भी मना किया। पर ऐसे अंधविश्वासों को धता बताते ज्योति हेगड़े ने रुद्र वीणा सीखी। अंतर के उजास में ध्रुवपद की खंडार वाणी में इसकी साधना की।   फिर तो वीणा के उनके तार कुछ इस कदर सधे कि विश्वभर में विरल रुद्र वीणा वादक के रूप में ख्यात हुई। 

ज्योति हेगड़े रुद्र वीणा में होले—होले स्वरों की बढ़त करते एक मीठी सी अनूगूंज मन में पैदा करती है। अध्यात्म की गहराईयों में ले जाते आलाप के साथ निचले सप्तक में सुरों का प्रवाह! लयबद्धता संग जोड़़ और फिर झाला। संगीत के विरल ध्यान में डूबाते हैं, रुद्र वीणा के उनके स्वर! उनका वादन नाद—ब्रह्म से साक्षात् है। हठयोग प्रदीपिका में आता है, एकाग्र मन से नाद का अन्वेषण ही योग है। ज्योति हेगड़े यही कराती है। संगीत में ध्यान का योग। राग गुजरी तोड़ी, राग ललित, राग मधुवंती, राग चन्द्रकौन्स और भी दूसरे रागों में उन्हें सुनेंगे तो लगेगा ध्वनियों के जरिए अंतर्मन सौंदर्य को हमने पा लिया है। राग पूर्वी में उन्हें कभी सुना था। पूर्वी थाट के इस मौलिक राग को सुनते अनुभूत हुआ, सूर्यास्त के समय नटराज कैलाश पर नृत्यरत हैं। ध्यान से जुड़ी ध्वनि मे ज्ञान के परम आनंद का अवगाहन कराते रुद्र वीणा के स्वरों का वह उजास मन में अभी भी बसा है। ज्योति हेगड़े की रुद्र वीणा के स्वर ऐसे ही हैं, शिवत्व से साक्षात् कराते। योग संग ज्ञान का आलोक छुआ अपनापन वहां है।


Tuesday, October 8, 2024

प्रकृति की अनुगूंज है राग नट भैरव

 राग 'नट भैरव' पर 'दैनिक जागरण' सप्तरंग, 6 अक्टूबर 2024 में...

दैनिक जागरण - 6 अक्टूबर 2024




ध्रुवपद उत्सव

 जवाहर कला केन्द्र के आग्रह पर 5 अक्टूबर 2024 को ध्रुवपद उत्सव में बोलने जाना हुआ...

सुखद लगा, देश की ख्यातनाम रूद्रवीणा वादक ज्योति हेगड़े संग बतियाना हुआ।  उन्हें सुनता रहा हूं, रूद्रवीणा की वह इस दौर की विरल साधिका है। 

सुप्रसिद्ध सुरबहार साधक पं० पुष्पराज कोष्टी का भी सान्निध्य संपन्न करने वाला था...







Saturday, October 5, 2024

शक्ति की आराधना से जुड़ी संस्कृति

 

पत्रिका, 5 अक्टूबर, 2024

भारतीय संस्कृति समग्रता में शिव और शक्ति में समाई है। ​शिव स्रोत हैं, शक्ति गति। शिव निर्गुण, निराकार ब्रह्म है। शक्ति उसकी अभिव्यक्ति। बांग्ला कवि कृत्तिवास रचित रामायण में राम रावण को हराने इन्हीं दिनों शक्ति पूजा करते है। 

बंग्ला में यह नवरात्रा अकाल बोधन है। माने असमय पूजा।  कथा आती है, देवी अम्बिका रावण के साथ थी इसलिए राम उसे हरा नहीं पा रहे थे। राम ने 108 नील-कमल से देवी आराधना प्रारंभ की। राम एक—एक कर फूल चढाने लगे कि देवी ने परीक्षा ली। एक कमल कम पड़ गया। राम को याद आया, उनकी मां उन्हें कमल नयन कहती थी। उन्होंने अपनी आंखे निकाल देवी को भेंट करना चाहा। देवी प्रकट हुईं और उन्हें रावण को मारने की शक्ति प्रदान की।

हमारी संस्कृति इसी तरह शक्ति—रूप में प्रतीक धर्मी है।​ ​शिव देवों के देव महादेव क्यों हैं? इसलिए कि अकेले वह हैं, जिन्होंने शक्ति को अपने समान, बल्कि अपने से भी अधिक सम्मान दिया। भृंगी उनके बहुत बड़े भक्त हुए। शिव को मानते थे, शक्ति को नहीं। एक बार शिव परिक्रमा करने कैलाश गये। देखा, मां पार्वती निकट बैठी है। उन्होंने प्रदक्षिणा करने बीच से गुज़रने की कोशिश की। शक्ति शिव के वामांग पर विराज गई। 

भृंगी ने सर्प रुप धारण कर बीच से निकलने का यत्न किया। शिव अर्द्धनारीश्वर हो गए। दाहिने भाग से पुरुष और बाएं भाग से स्त्रीरूप। भृंगी कहां माने? उसने चूहे रुप में मां पार्वती को विलग करना चाहा। क्रोधित हो मां ने शाप द‍िया। तू मातृशक्ति को नहीं मान रहा। जा इसी समय तेरे शरीर से तेरी माता का अंश अलग हो जाए। तंत्र विज्ञान कहता है, शरीर में हड्डियां और पेशियां पिता से और रक्त-मांस माता से प्राप्त होता है। शाप से भृंगी के शरीर से रक्त और मांस गिरने लगा। अविमुक्त कैलाश में मृत्यु तो हो नहीं सकती थी। असह्य पीड़ा में क्षमा मांगी। शिव—शक्ति ने भृंगी को अपने गणों में प्रमुख स्थान दे तीसरा पैर दिया। इसी से अपने भार को संभाल वह शिव-पार्वती संग चलते हैं। आरती में हम गाते भी तो हैं, नंदी-भृंगी नृत्य करत हैं...।

नवरात्र दुर्गा पर्व है। दुर्गा शब्द भी तो दुर्ग से बना है। माने जिसे जीता नहीं जा सकता। 

भवानी अष्टकम् में आदि शंकराचार्य लिखते है, 'गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।'  माने मां मेरी शरण- गति आप ही हैं। कहते हैं, शंकराचार्य जब कश्मीर पहुंचे तो एक दफा भूख प्यास से शक्तिहीन हो गए। निकट से एक महिला निकली। उन्होंने पानी पिलाने का आग्रह किया। महिला ने कहा, पुत्र पास आकर पी लो। वह बोले, मां मैं शक्तिहीन हूं। मुस्कराते हुए उसने कहा,  शिव को मानते हो तो शक्ति की क्या जरूरत? शंकराचार्य को आदि शक्ति का भान हुआ। उन्होंने वहीं आराधना की। कहा, चराचर जगत को चलाने वाला कोई और नहीं आद्याशक्ति है।

शिव पूर्ण पुरुष है। इसलिए कि वह शक्ति को धारण किए हैं। शक्ति माने प्रकृति। मातृ शक्ति इसीलिए वंदनीय है​ कि वह अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीती है। 

पंडित विद्यानिवास मिश्र लिखते हैं, नदी ऊंचाइयों का मोह त्याग ढ़लान की ओर बहती है। उसी तरह मां धीरे धीरे अपने पिता, पति से संतान की ओर अभिमुख होती, उसी के सुख के लिए जीती है। इसमें ही अपनी संपूर्ण सार्थकता पाती है। जननी कौन? वही जो जने को प्यार करें। जब तक जननी है—प्यार, नेह का भाव भी बना रहेगा। नवरात्रि नौ ​देवियों की आराधना का नहीं, मातृ—शक्ति के वंदन—अभिंनदन का पर्व है।