ध्रुवपद भारतीय संगीत—संस्कृति का अभिज्ञान है। अभिज्ञान माने संगीत की हमारी परम्परा की पहचान। जयपुर ध्रुवपद का तीर्थ—स्थल है। यहीं डागर घराने के पितामह बाबा बेहराम खान की चौखट है। कभी यहां अखिल भारतीय ध्रुवपद समारोह होता रहा है। यह आयोजन तो इस समय नहीं होता परन्तु संस्कृतिकर्मी इकबाल खान की पहल पर कुछ दिन पहले जवाहर कला केन्द्र में दो दिवसीय ध्रुवपद उत्सव हुआ। गायन—वादन प्रस्तुतियों के साथ ही इसमें ध्रुवपद पर संवाद भी हुआ। विश्वप्रसिद्ध रुद्र वीणा वादक ज्योति हेगड़े को सुनने, बतियाने का भी इस दौरान संयोग हुआ। अरसा पहले उनकी वीणा सुनी थी। फिर से सुना तो लगा, तार वाद्य में नाद—ब्रह्म से साक्षात् हुआ है।
रुद्र वीणा माने शिव का वाद्य। आदि ध्वनि से जुड़ी है- रुद्र वीणा। शिव समय को संबोधित हैं। महाकाल माने उत्पत्ति, स्थिति और लय के अधिपति। कथा आती है, मां पार्वती सो रही थी। शिव ने उन्हें वक्ष स्थल पर हाथ रखकर लेटे देखा। जगत जननी की चढ़ती—उतरती सांस और लेटने की मुद्रा के पवित्र सौंदर्य पर रीझते उन्होंने रुद्र वीणा का आविष्कार कर दिया। शिव का यह प्रिय वाद्य है। कल्पना करता हूं, भगवान शिव रुद्र वीणा बजाते हैं और इसमें निहित ब्रह्मांडीय कंपन और दिव्य लय में इसका जैसे सार समझाते हैं। रुद्र वीणा में वह पारलौकिक ध्वनियों के जरिए ही सृजन, स्थिति और संहार को प्रतिध्वनित करते हैं।
उस दौर में जब रुद्र वीणा महिलाओं के लिए सर्वथा त्याज्य था, ज्योति हेगड़े ने इसी में अपने को साधा। आरंभ में वह गुरु बिन्दु माधव माधव से सितार सीखती थी। एक रोज़ उन्हें रूद्रवीणा बजाते सुना। वीणा के तार से उनका मन इस कदर झंकृत हुआ कि उन्होंने इसे सीखने का निर्णय कर लिया। गुरु ने मना कर दिया। कहा, लड़कियों के लिए यह नहीं है। इसमें अतिरिक्त ताकत की जरूरत पड़ती है। ज्योति ने जिद पकड़ ली तो उन्होंने एक पुरानी न बज सकने वाली रुद्र वीणा परीक्षण के लिए दी। वह लगातार बारह घंटे इसे बजाती रही। घर वालो ने कहा, ग्रामोफोन की सुई अटक गई है। उनकी मां ने जब थॉमस की 'द वे म्यूजिक' में रुद्र वीणा के संबंध में यह लिखा हुआ पढ़ा-सुना कि इसे बजाने वाली महिला कभी मां नहीं बन सकती तो उन्होंने भी मना किया। पर ऐसे अंधविश्वासों को धता बताते ज्योति हेगड़े ने रुद्र वीणा सीखी। अंतर के उजास में ध्रुवपद की खंडार वाणी में इसकी साधना की। फिर तो वीणा के उनके तार कुछ इस कदर सधे कि विश्वभर में विरल रुद्र वीणा वादक के रूप में ख्यात हुई।
ज्योति हेगड़े रुद्र वीणा में होले—होले स्वरों की बढ़त करते एक मीठी सी अनूगूंज मन में पैदा करती है। अध्यात्म की गहराईयों में ले जाते आलाप के साथ निचले सप्तक में सुरों का प्रवाह! लयबद्धता संग जोड़़ और फिर झाला। संगीत के विरल ध्यान में डूबाते हैं, रुद्र वीणा के उनके स्वर! उनका वादन नाद—ब्रह्म से साक्षात् है। हठयोग प्रदीपिका में आता है, एकाग्र मन से नाद का अन्वेषण ही योग है। ज्योति हेगड़े यही कराती है। संगीत में ध्यान का योग। राग गुजरी तोड़ी, राग ललित, राग मधुवंती, राग चन्द्रकौन्स और भी दूसरे रागों में उन्हें सुनेंगे तो लगेगा ध्वनियों के जरिए अंतर्मन सौंदर्य को हमने पा लिया है। राग पूर्वी में उन्हें कभी सुना था। पूर्वी थाट के इस मौलिक राग को सुनते अनुभूत हुआ, सूर्यास्त के समय नटराज कैलाश पर नृत्यरत हैं। ध्यान से जुड़ी ध्वनि मे ज्ञान के परम आनंद का अवगाहन कराते रुद्र वीणा के स्वरों का वह उजास मन में अभी भी बसा है। ज्योति हेगड़े की रुद्र वीणा के स्वर ऐसे ही हैं, शिवत्व से साक्षात् कराते। योग संग ज्ञान का आलोक छुआ अपनापन वहां है।