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पत्रिका, 20 सितम्बर 2025 |
चित्रकला मन की भाषा है। रंग और रेखाओं रचा दृश्य कहन! लियोनार्दो द विन्शी ने कभी कहा था, अच्छा चित्रकार वह है जो मनुष्य की देह ही नहीं आत्मा की आकांक्षा को चित्रित करे। देह का चित्रण सरल है किन्तु आत्मा की आकांक्षा उकेरना दुरूह है। है। इसीलिए कहें, चित्र में दृश्य नहीं उससे जुड़ा आंतरिक—बोध महत्वपूर्ण होता है। भारतीय कला—दृष्टि यही रही है।
रंग प्रकाश का
गुण है। इसी से आँखों
में दृश्य बोध
होता है। मूल तीन रंग
नीला, लाल और पीला है।
इन पर जब प्रकाश पड़ता
है, तब उसकी तरंगे और
भी रंग होने
का अहसास कराती
हैं। प्रकाश परावर्तित
होने से ही आंख भांत
भांत के रंगीन
दृश्य महसूस करती
है। दिन का उजला और रात्रि का अंधकार
मूल रंगों में
घुलता है तो रंगों की
विविध छटाएं बनती
है। आकाश को हम नीला
मानते हैं। पर यह नीला
थोड़े ना है!
सूर्य के प्रकाश में बैंगनी,
जामुनी, नीला, हरा,
पीला नारंगी और
लाल रंग घुला
होता है। यह उजास जब
वायुमंडल में प्रवेश
करता है, तो विभिन्न गैसों और
धूल-कणों से टकराता है।
रेले स्कैटरिंग प्रभाव
से नीला और बैंगनी रंग
तब अधिक बिखरता
हैं। लाल और नारंगी कम।
प्रकाश के एक छोर से
दूसरे छोर तक की दूरी
में चूंकि हमारी
आँख नीले के प्रति अधिक
संवेदनशील होती है।
सो हमें आकाश
नीला दिखता है।
सूर्य किरणों को
उदय या अस्त होने के
समय चूंकि पृथ्वी
तक पहुंचने में
अधिक दूरी तय करनी पड़ती
है, इसमें नीला
और बैंगनी पूरी
तरह बिखर जाता
हैं और केवल लाल, नारंगी
और पीला ही आँखों तक
पहुँच पाता हैं।
इसीलिए सूर्योदय और
सूर्यास्त में आकाश
सिंदूरी अनुभूत होता
है।
प्रकाश के कारण आँखों में उत्पन्न होने वाले दृश्य बोध से जुड़ी पी.सी. किशन की महती कलाकृतियां का आस्वाद इधर किया। वह रंगों का बोध—बंचाने वाले कलाकार हैं। आत्म—आकांक्षा में रंगों का अनूठा लोक रचने वाले कलाकार। वह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है पर कवि मन के चित्रकार हैं। मूलतः ओडिसा के हैं पर एक दशक से हरे रंग का लोक रच रहे हैं। अपनी सिरजी कलाकृतियों में उन्होंने गगन निहारते हरे पेड़ों का झुरमुट, झाड़ियां और बहती नदी में भी झांकते पेड़ों के हरेपन को जिया है। वह अच्छे संगीतज्ञ हैं और मूर्तिकार भी सो प्रकृति की रची उनकी दृश्यावलियों में संगीत का अमूर्तन भी बसा है।
हमारे यहां कहा गया है, रंजयति इति राग! राग शब्द 'रंज' धातु से बना है। अर्थ है, "रंगना" या "प्रसन्न करना"। मन को जो भाव—सौंदर्य से रंग दे, वह राग है। शास्त्रीय संगीत में राग श्रोताओं के मन में शुद्ध भाव, प्रकृति के अनुरूप विशिष्ट भावों और आनंद से सराबोर करते हैं। इसीलिए शास्त्रीय रागों का अपना महत्व है। हर राग का अपन समय और ऋतु से जुड़ा भाव है। विशिष्ट नियम, स्वर, और अलंककरण में गूंथा होता है, राग। इसीलिए संगीतकार को उसे व्यंजित करने में अपार स्वतंत्रता होती है। अनुशासन से बंधा होता है राग पर उस बंधे अनुशासन में भी गान की विविधता की अपार स्वतंत्रता निहित होती है। यह संगीत ही है जिसमें नियम के बावजूद कलाकार को अपना मौलिक रचने की अपार स्वतंत्रता है। विशिष्ट स्वरों, वाक्यांशों और अलंकरणों में कलाकार पूर्व निर्धारित राग को उसके अनुशासन में भी निभाता है तो अपने तई निरंतर मौलिक भी करता जाता है। यही राग की बढत है। दिन के विशेष समय, रात्रि, सांझ, भोर और मौसम या ऋतु में राग का निभाव प्रकृति से जुड़ी मन की दृष्टि का ही तो नाद है!
पी.सी. किशन ने अपनी कला में यही किया है। हरे रंग में संगीत के रागों का निभाव किया है। उनकी कलाकृतियों में एक खास तरह की एकांतिका है। मौन है। पर इनमें घुले स्वरों का आस्वाद कराने वाली सांगीतिक रागों में उन्होंने चित्रों का संसार सिरजा है। प्रकृति में घुले राग मिंया मल्हार, बिलावल, राग देश, राग पुरिया कल्याण, और राग भटियार जैसी दुर्लभ रागों को उन्होंने चित्रों में रचा है। मुझे लगता है, प्रकृति समाए स्वर—उजास का उन्होंने जैसे अपनी कलाकृतियों में संधान किया है। इसीलिए उनके हरे में घुले चित्र देखते हुए औचक हम प्रकृति के निकट पहुंच, ऋतुओं में समाई जीवंतता को अनुभूत करने लगते हैं। उनकी इन कलाकृतियों का आस्वाद करते प्रकृति के स्वरों की मिठास ही हममें नहीं घुलती, संगीत के शास्त्र से भी अनायास साक्षात होते हैं। राग क्या है? समय के अनुकूल वातावरण और रचनात्मकता व्यक्त करने का एक ढांचा ही तो! इसी से श्रोताओं में शास्त्रीय राग विभिन्न भावनाओं को जगाने और सांस्कृतिक दृष्टि विकसित करते है। उनकी कलाकृतियो में नीलांबर भी है तो पेड़ों के हरे में घुला हल्का हरा है। हरे में छुपे और भी बहुत से हरे रंगों के सूक्ष्म अनुभवों की एंद्रिय अनुभूति वहां है। यह महत्वपूर्ण है कि पी.सी. किशन ने पेड़ों में रची बसी प्रकृति को ही अपनी कला का आधार बनाया है। सभी चित्र हरे का शाश्वत सौंदर्य लिए है। गहरा हरा, हल्का, धूप में नहाया हरा, पीला होता हुआ तो कभी सिंदूरी होता हुआ भी।
यह महज संयोग
नहीं है कि उनकी कलाकृतियां
किसी एक रंग में, प्रकृति
के एक से लगते दृश्य—बोध में भी
लुभाती है। मुझे
लगता है, किसी
चित्र की रम्यता
देखने के ढंग पर भी
निर्भर करती है।
कला समीक्षक और
उपन्यासकार जॉन बर्जर
ने कभी बीबीसी
के लिए टेलीविज़न
कार्यक्रम "वेज़ ऑफ़
सीइंग" किया था।
बाद में उनका
यह लिखा पुस्तक
रूप में भी प्रकाशित हुआ। बर्जर
ने कला से जुड़ी दृश्य
की सामाजिक और
राजनीतिक व्याख्या की है। पर मुझे
लगता है, कलाकृतियों
को देखना भी हमारे संस्कारों
से जुड़ा है। रंगो का अपना मनोलोक
है। वह पढे जा
सकते हैं। हरा
रंग अंतर्मन आकांक्षा,
संतुलन और पर्यावरण
से जुड़ा है। शरीर
व आत्मा में
सामंजस्य का हेतु
भी। पेड़—पौधों का
रंग इसीलिए शायद
हरा है कि वे प्रकृति
में संतुलन बनाए
रखते हैं।
पी.सी. किशन
ने वृक्षों के
बहाने हरे रंग की गहराई,
प्रकाश और छायाओं
का भी विरल रूपांकन किया है।
कहीं पढ़ा याद
आ रहा है कि सूरज
की धूप चांद
के धरातल से
टकराकर चांदनी बन
जाती है। माने
चांद सृजक नहीं
अनुवादक है। यह अनुवाद भी हरेपन में उनकी कलाकृतियों में जतन से हुआ है। किसी
एक रंग में और कितने
रंग हो सकते हैं, यह
भी उनकी कलाकृतियां
जैसे हमें जताती
है। इसीलिए तो
उनके चित्र में
स्वच्छ आकाश में
बादलों की अठखेलियों
में झरता हरा
भी है तो सांझ में
सिंदूरी होते आकाश
में झिलमिलाता हरा
भी अलग से अपनी छटा
बिखेरता है। उनकी
कलाकृतियां जंगल, धरती
और मिट्टी की
खुशबू संग बहते
जल की धाराओं
का राग है। हरे के
बहाने तकनीक आच्छादित
इस दौर में कुछ देर
ठहर प्रकृति से
जुड़ने की सीख देते, रंग—भाषा में
प्रकृति की रम्यता
लिए।
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