ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Sunday, March 31, 2024

'कलाओं की अंतर्दृष्टि' पर '​दैनिक ट्रिब्यून' में...

"...भारतीय दृष्टि इस पुस्तक का वह प्राणतत्व है जो इसे जिज्ञासुओं के लिए अनिवार्यत: पठनीय बना देता है।

 ...मूल्यवान और गंभीर कृति।...

कुल 23 अत्यन्त चिंतनपरक निबंधों में लेखक ने भारतीय कलाओं के विभिन्न पहलुओं पर प्रामाणिक दृष्टि से विचार किया है।..."

--योगेन्द्र नाथ शर्मा 'अरुण', वरिष्ठ आलोचक 




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