ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Sunday, September 8, 2024

'चिनार पुस्तक महोत्सव

'अमर उजाला' में...

कुछ दिन पहले श्रीनगर जाना हुआ था। 'चिनार पुस्तक महोत्सव' के एक सत्र 'पुस्तकें, पाठक और जीवन' पर बोलने के लिए। पत्रकार कंकणा लोहिया से जब संवाद कर रहा था, कश्मीर भ्रमण और वहां बिताए दिनों से जुड़ी कहानियों को लेकर युवाओं में विशेष आकर्षण पाया। सत्र के बाद युवाओं ने बड़ी संख्या में प्रश्न किए। मूल प्रश्न इस बात के इर्द—गिर्द थे कि लिखें कैसे? अभिव्यक्ति के रास्ते कैसे खुले? अपनी ओर से इनका समाधान किया परन्तु निरंतर मन में यह अनुभूत भी होता रहा कि कश्मीर में बदलाव आ रहा है। अभिव्यक्ति के बहाने युवा जीवन की नई राहों की ओर प्रस्थान करने को उत्सुक हैं।...
अमर उजाला, 8 सितम्बर 2024


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