ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, September 7, 2024

लौट रहा, कथाओं में घुला दृश्य—कला जग

इस वर्ष के आरंभ में हुए एक सवें में पाया गया है कि भारतीय युवाओं में कॉमिक्स पढ़ने की रूचि में तेजी से बढ़त हो रही है। युवा सुपर हीरो बैटमैन, सुपरमैन, स्पाइडर मैन आदि की चित्रकथाओं के साथ ही जापानी चित्रकथाओं, जिन्हें 'मांगा' कहा जाता है को बहुत पंसद करते हैं। कॉमिक्स छवियों संग शब्दों के सुनियोजित मेल से जुड़ी दृश्य कला है।  शब्द संग संकेतो में घुला दृश्य—जग! सहज संप्रेष्य। अमेरिका में पिछले वर्ष शिक्षण संस्थाओं में विषयों को पढ़ाने के लिए उनका कॉमिक्स—रूपान्तरण किया गया। विद्यार्थियों ने इसे बहुत पंसद किया। 

पत्रिका, 7 सितम्बर 2024

हमारे यहां 'अमर चित्र कथा' घर—घर चाव से पढ़ी जाती रही है। लोकाख्यानों से लेकर पुराण, मिथकों और किंवदंतियों का अनुपम संसार इसी के जरिए बहुत से स्तरों पर बच्चों से लेकर बड़ों तक सहज पहुंचा। पर यह आसान कहां था! 'अमर चित्र कथा'  सर्जक थे—अनंत पै। वह पहले टाइम्स समूह में नौकरी करते थे। मैनड्रेक, द फैंटम आदि चरित्रों से जुड़ी इन्द्रजाल कॉमिक्स शृंखला का प्रकाशन टाइम्स समूह ने ही किया था। एक दिन अनंत पै ने जब दूरदर्शन पर प्रसारित प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम देखा तो अंदर से हिल गए। प्रतिभागियों ने ग्रीक पौराणिक कथाओं से जुड़े सवालों के जवाब तो तुरंत दे दिए, लेकिन भारतीय पौराणिक कथाओं से जुड़े एक भी सवाल का जवाब नहीं दे पाए। तभी अनंत पै ने तय कर लिया कि वह कुछ करेंगे। उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया की अपनी नौकरी छोड़ “अमर चित्र कथा” की शुरूआत की। इंडिया बुक हाउस के जीएल मीरचंदानी को इसके लिए उन्होंने राजी किया। यह वह समय था जब लोग चित्रकथाओं को हल्के स्तर की समझते थे। चित्रकथा प्रकाशन का पै का कार्य कार्य इसी कारण आरंभ में असफल रहा। पर वह हार मानने वाले नहीं थे। उन्होंने विद्यालयों से संपर्क किया। छात्रों के एक समूह को चित्रकथा का उपयोग कर और दूसरे समूह को पारंपरिक पुस्तकों से इतिहास पढ़ाया गया। दोनों समूहों का जब परीक्षण हुआ तो पाया गया, जिन्होंने चित्रकथा से अध्ययन किया वह इतिहास को अधिक ढंग से समझे। उनके इस प्रयोग ने थोड़े समय में ही क्रांति ला दी। 'अमर चित्र कथा' घर—घर में लोकप्रिय हो गयी। अनंत पै ने झाँसी की रानी, शिव, कार्तिकेय, गणेश, कृष्ण और शिशुपाल, ह्वेन सांग आदि चरित्रों के साथ ज्ञान की भारतीय परम्परा से जुड़े विषयों को चित्रकथाओं में पिरोया। वह दौर भी आया जब अमर चित्र कथा के 86 मिलियन से ज़्यादा संस्करण बिके। राजस्थान में ब्रजराज राजावत ने मूमल महेन्द्रा, पद्मिनी, लोक देवता बाबा रामदेव, सैणी बीणा, सुक्खा ठग, अमृता देवी का बलिदान जैसी और भी बहुत सारी सुंदर चित्रकथाएं सिरजी है। पर व्यावसायिक दृष्टि और पहुंच की सीमा के कारण वह पाठकों तक ढंग से पहुंच नहीं पायी। 

इधर देश की नई शिक्षा नीति के अंतर्गत शिक्षा के सभी स्तरों के पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान परम्परा को सम्मिलित कर पढ़ाने की नीति पर जोर दिया गया है। सवाल यह उठता है कि क्या यह सहज संभव है? मुझे लगता है, कॉमिक्स इसमें खासा मदद कर सकते हैं। बच्चों ही नहीं बड़ों पर भी दृश्य—शब्द प्रभाव गहरा असर करते हैं। छवियों संग यदि शब्द पढ़ें जाए तो वह स्मृति में लम्बे समय तक जीवंत रहते हैं। पाठकीय बोझिलता वहां समाप्त जो हो जाती है! विश्वभर में इसीलिए इधर कथा—कहानियों के पुस्तक संस्करणों से कहीं अधिक ग्राफिक उपन्यासों का रूझान बढ़ रहा है। युवाओं के लिए जितनी रोचक सुपरहीरो और रहस्य—रोमांचक चित्रकथाएं हैं, उतनी ही भारतीय ज्ञान परम्परा से जुड़े विषय हो सकते हैं, बशर्ते उन्हें 'अमर चित्र कथा' की तर्ज पर प्रस्तुत किया जाए। कुछ समय पहले चुनाव आयोग ने मतदान—जागरूकता के लिए ऐसा सफल प्रयोग किया था। कॉमिक बुक "चाचा चौधरी और चुनावी दंगल" के जरिए युवाओं को अपना नामांकन करने और भाग लेने के लिए प्रेरित करने की पहल हुई थी। यह सच है, कथा कहती छवियां मन में गहरा असर करती है। 



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