.राजस्थान पत्रिका, 21 सितम्बर 2024
..इस 26 सितम्बर को उदय शंकर का हमसे बिछोह हुए 47 साल हो जाएंगे पर उनका नृत्य और प्रयोगधर्मिता विश्वभर में आज भी जीवंत है। असल में नृत्य देह का राग है। ऐसा जो मन को रंग दे। उदय शंकर का नृत्य ऐसा ही था। उन्होंने कलाओं के अंत:सबंधों का नृत्य लालित्य रचा।
...यह मान लिया गया है कि परम्परागत जो हॅै, उसका कुशलता से निर्वहन ही नृत्य निपुणता है। पर उदय शंकर ने इस मिथक को तोड़ा। बैले, भरतनाट्यम, कथकली, कथक, ओडिसी, गवरी आदि नृत्यों के घोल में उन्होंने नृत्य की अनूठी भारतीयता रची।...एलिस बोनर ने उनका नृत्य देखा तो बस देखती ही रह गई।
अन्ना पावालोवा ने उन्हें एक दफा देखा, पाया अजंता के किसी देवता ने मानव शरीर धारण कर लिया है। मूलत: उदय शंकर चित्रकार थे, अन्ना पावालोवा के साथ पहली बार राधा—कृष्ण बैले में कृष्ण बने तो बस नर्तक ही बनकर रह गए।
अमला शंकर ने उनके नृत्य पर मोहित होकर ही उनसे विवाह किया। उदयशंकर—अमला की विश्व की बेहतरीन 'कल्पना' फिल्म भी आई। यह सुमित्रानंदन पंत के कथ्य—काव्य पर आधारित थी...
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