ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Sunday, November 27, 2011
अल्लाह जिलाई बाई पर यह आलेख ...
लखनऊ से प्रकाशित जन सन्देश टाइम्स में प्रति सप्ताह प्रकाशित संगीत यह स्तम्भ...रविवार, २७ नवम्बर को प्रकाशित यह आलेख
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