ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Wednesday, December 12, 2018

कविता देवै दीठ-मीठेस निरमोही

काव्य संग्रह 'कविता देवै दीठ' पर कवि, कथाकार मीठेस निरमोही जी ने 'माणक' के मार्च 2013 के अंक में विस्तृत आलोचनात्मक लिखा था।
आपकी नज़र—










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