ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, May 2, 2020

नवनीत, मई 2020 अंक

"...सतीश गुजराल ने चित्रों की अनूठी काव्य भाषा रची। उनके चित्र, मूर्तियों, म्यूरल और इमारतों की सिरजी संरचनाओं में भारतीय कलाओं के सर्वांग को अनुभूत किया जा सकता है।...आकृतिमूलक होते हुए भी सांगीतिक आस्वाद में अर्थ की अनंत संभावनाओं को उनकी कला में तलाशा जा सकता है। एक तरह की किस्सागोई वहां है। उनकी स्वैरकल्पनाएं (फंतासी) भावों का अनूठा ओज लिए सौंदर्यबोध की विरल जीवनदृष्टि है। यह सही है,उनके आरंभिक चित्र गहरा अवसाद लिए विभाजन की त्रासदियों पर आधारित है परन्तु बाद की उनकी कलायात्रा पर जाएंगे तो यह भी पाएंगे आत्मान्वेषण में उन्होंने भारतीय कला दृष्टि को अपने तई चित्र भाषा के नये मुहावरे दिये।..."



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