ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Monday, May 4, 2020

आंचलिकता का लालित्य

"... इस  समय जो गद्य लिखा जा रहा है, उसमें ‘मेरी चिताणी’ इस मायने में विरल है कि लेखक ने इसमें अपने गांव के बहाने जीवन को व्यापक परिप्रेक्ष्य में गुना है। कहन के सहज, आंचलिक पर दार्शनिक बोध में लिखे का उनका आत्मकथात्मक लालित्य लुभाने वाला है।..."
राजस्थान साहित्य अकादेमी की पत्रिका "मधुमती" में -





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