ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Sunday, October 31, 2021

भव के वैभव से साक्षात्कार कराती यात्राएं-- कृष्ण बिहारी पाठक

'अमर उजाला' 
31 October 2021

डॉ. राजेश कुमार व्यास का यात्रा संस्मरण 'आँख भर उमंग' इस समय चर्चा में है। इसमें लेखक की साहित्यिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक, प्राकृतिक और पर्यावरणीय यात्रा दृष्टि का कवित्वपूर्ण, हृदयस्पर्शी रूपांकन और इतिहास मिथक को एकरस करती किस्सागोई विशिष्ट है। मार्ग से मंजिल तक की प्रत्येक संज्ञा से जुड़े पौराणिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक और सामाजिक संदर्भों पर लेखक की अद्भुत पकड है। यात्रावृत्त पढते पाठक को  बार बार  लगता है कि लेखक उसे हाथ पकड़कर इतिहास, भूगोल की सीमाओं के पार स्थल विशेष के उद्भव और विकास की परिधियों तक ले गया है, और  कोने कोने को झाँककर दिखा रहा है। कहीं चंबल के बीहड़ों के बीच खंडहरों में सांस्कृतिक वैभव की तलाश है तो  रवींद्र की हवेली तथा शांति निकेतन में मूर्त - अमूर्त कलाओं का आभास। कहीं सिद्धार्थ से तथागत बनते गौतम बुद्ध की आत्मिक यात्रा की सहवर्ती मानसिक यात्रा है तो शिव के ज्योतिर्लिंगों तीर्थों और मंदिरों में शिवत्व का संधान। कहीं आदिवासी कलाओं में पैठकर उनकी आदिम जीवन शैली की पडताल है तो कहीं लोक देवी- देवता, लोक परंपरा और लोकाचार । कहीं हम्मीर और कान्हड़देव की वीरगाथाओं के साक्ष्य हैं तो  खेत खलिहान और गाँव की गोधूलि का आनंद भव है।

शिल्प से सरोकार तक, श्लोक से मंत्र तक, कविता से चित्र तक,सेतु से नदी तक, संग्रहालय से संस्थान तक, खंडहर से दुर्ग तक, शास्त्र से लोककथाओं तक, पाषाण से मूर्ति तक, हवेली से मंदिर तक, दंतकथाओं से जातक कथाओं तक, किंवदंतियों से प्रमाण तक, सैलानी  ने  विस्तृत यात्रा संसार संजोया है।

विरासत, धरोहरों की यात्रा में लेखक लोकश्रुतियों, किंवदंतियों की भावुक कल्पनाओं को पुरातत्व और विज्ञान के साक्ष्यों की तार्किकता से पुष्ट करते हुए अतीत  गौरव की अमिट गाथाओं को और अधिक भास्वर,  मुखरित करता है।  संसद भवन की प्रेरणा में पुर्तगाली स्थापत्य के स्थान पर मितावली के इकोत्तरसा महादेव मंदिर की मूल प्रेरणा का प्रमाण देना और इस्लाम से गुंबद निर्माण की प्रेरणा के भ्रम को, इस्लाम के आगमन से वर्षों पूर्व बनी भोजेश्वर मंदिर की गुंबदाकार छत दिखा तोडने के प्रसंग इस वृत्त को भारत के सांस्कृतिक स्वाभिमान का यात्रावृत्त सिद्ध करते हैं। “आँख भर उमंग” ऐसी ही सजीव कृति है जिसके पृष्ठ दर पृष्ठ, पंक्ति दर पंक्ति, शब्द दर शब्द पढ़ता पाठक एक पल को भी ध्यान नहीं भटका सकता।

 

यात्रा संस्मरण — 'आँख भर उमंग'

लेखक — डॉ. राजेश कुमार व्यास

प्रकाशक — नेशनल बुक ट्रस्ट, इण्डिया, नई दिल्ली

मूल्य — 310 रूपये मात्र, पृष्ठ — 250

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