ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Sunday, October 31, 2021

आँख भर उमंग-यात्रा की उमंग का साहचर्य

-डॉ.राजेन्द्र कुमार सिंघवी

केन्द्रीय साहित्य अकादमी से सम्मानित रसज्ञ कवि, कलाविद् डॉ.राजेश कुमार व्यास की राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से प्रकाशित 'आंख भर उमंग' कृति एक दशक की उनकी यात्राओं का भाव भरा प्रस्फुटन है।  यह यात्रा चंबल के जंगलों, नालंदा के खंडहर, नर्मदा की धाराओं, पहाड़ों की नैसर्गिक छटाओं के साथ-साथ भारत की लोक संस्कृति, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक अन्तर्यात्राओं को भी समाहित करती है, जहां प्रकृति,वास्तु शिल्प, इतिहास एवं कला का वैभव चाक्षुष बिम्ब के रूप में व्यक्त होता है।


डॉ. व्यास के इस यात्रा संस्मरण में पहाड़ों की यात्रा में रोमांच के साथ प्राकृतिक सुषमा का मोहक दृश्य लेखनी की मंत्रमुग्ध गति है। भीमताल की यात्रा करते हुए वे लिखते हैं, " गाड़ी पहाड़ से नीचे उतर रही है। पेड़ों का झुरमुट... और बीच में इकट्ठा जल। बरखा के पानी को जैसे धरित्री ने अपनी छोटी सी अंजुरी में बहुत जतन से समेट लिया है।" यह भावमयी क्षिप्रता आकर्षण पैदा करती है।

यात्रा के साथ साथ पुस्तक में लोक संस्कृति से तादात्म्य हमारी आंतरिक लय को भी गतिमान कर देता है। 'दहकते अंगारों पर सबद नाद' शीर्षक यात्रावृत्त में जसनाथी नृत्य का वर्णन करते हुए लेखक स्वयं चमत्कृत होकर लिखते हैं, "लाल दहकते अंगारों पर जसनाथी नृत्य। तेज होते वाद्यों की गति और शब्द नाद के साथ नर्तक अपनी धुन में मगन! औचक एक नर्तक अंगारे को हाथों में उठा मुँह में डाल रहा है तो दूसरा उसे अपनी हथेली में ले मजीरे की तरफ फोड़ रहा है।" यह वर्णन पाठक को भी रोमांचित कर देता है।

डॉ. व्यास प्रकृति के चितेरे हैं। ऐसी स्थिति में पदार्थवादी दुनिया के प्रति उनका विकर्षण स्वाभाविक है। कश्मीर की वादियों में विचरते हुए अपने मन की थाह लेते हुए कह उठते हैं, "शहरीपन से आए बदलावों पर जब भी विचारता हूँ, मन जैसे बुझ जाता है। ढूंढने लगता हूँ, इस गडरिए जैसी उस मस्ती को जो अब न जाने कहाँ लोप हो गई है।"

इसी तरह कवि मन, कला हृदय लेखक ने गाँव, नगर, दुर्ग, नदियों, पहाड़ों, मंदिरों से लेकर खेत खलिहानों तक की यात्रा को जीवंत रूप में प्रवाहमयी शैली के साथ प्रस्तुत किया है। उल्लेखनीय है कि यात्रावृत्त रिपोर्ताज शैली में ना लिखकर भाव-भरी रसात्मक शैली में प्रांजल शब्दावली के साथ है,जिसमें पाठक लेखक के साथ ठहरता हुआ यात्रा करता है। लघु आकार में अनावश्यक शब्द बोझिलता और अलंकरण से बच पाना लेखक की उदारता का प्रमाण है। छिहत्तर यात्रावृत्तों की 250 पृष्ठों में समाहित 'आंख भर उमंग' पुस्तक संपूर्ण भारत की परिक्रमा है। पुस्तक में लेखक द्वारा लिए छायाचित्र भी मोहक है।

पुस्तक: आँख भर उमंग
लेखक: डॉ. राजेश कुमार व्यास
प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
पृष्ठ संख्या: 250
आमंत्रण मूल्य: 310/-

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24 October 2021

राजस्थान पत्रिका, 24 अक्टूबर 2021

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