ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Sunday, November 7, 2021

'जनसत्ता' रविवारीय में "आँख भर उमंग"


"...प्रवहमान भाषा शैली में लिखे इस यात्रा संस्मरण को पढ़ कर पाठक लेखक के साथ जैसे विचरता चलता है।...यात्राओं का कवित्वपूर्ण, रोचक वर्णन।'



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