(एनबीटी की पत्रिका 'पुस्तक संस्कृति' के नए अंक (नवम्बर—दिसम्बर 2021) में)
...कपिला वात्स्यायन जी के कला-चिन्तन को लोक संस्कृति की उनकी समझ से देखे जाने और इस पर गहराई से विचारे जाने की जरूरत है। उनके लिखे के अर्न्तनिहित में जाएंगे तो पाएंगे भारत भर की पारम्परिक प्रदर्शनकारी कलाओं का गहन अध्ययन, सर्वेक्षण करते उन्होंने लोक में प्रचलित कला रूपों, गाथाओं, परम्पराओं को गहरे से खंगाला ही नहीं है बल्कि शास्त्रीयता में उनके होने की गहरी तलाश की है। लोक से जुड़े आलोक में कलाओं की हमारी समृद्ध-संपन्न परम्पराओं और सभ्यता से उसके नाते पर उनका चिन्तन बहुत से स्तरों पर मन को मथता है...
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