ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, February 12, 2022

भारतीय कला दृष्टि का सार 'सर्वशिल्प प्रवर्तकम

यह विडंबना ही है कि कलाओं के मर्म में ले जाता नाट्यशास्त्र विमर्श में बहुत अधिक कभी रहा नहीं। पाठ्यपुस्तकों से इतर शायद इसे देखा भी नहीं गया। पिछले कोई एक दशक में नाट्यशास्त्र पर लिखे को ढूंढ ढूंढ कर पढ़ा है। लगा, अभिनव की दृष्टि से पृथक इसे समझने का भी प्रयास नहीं हुआ है। मुकुन्द लाठ, राधावल्लभ त्रिपाठी, ब्रजवल्लभ मिश्र और इधर अर्जुनदेव चारण को छोड़ दें  तो अन्य किसी का कार्य खास कोई उल्लेख जोग भी नहीं लगता।

राजस्थान पत्रिका, 12 फरवरी 2022

...अभिनव गुप्त ने 12 वीं शताब्दी में नाट्यशास्त्र की टीका लिखी थी। ...इसका पारायण करते यह भी निरंतर अनुभूत किया है कि इसके जरिए भारतीय कलाओं से जुड़ी पूरी की पूरी एक शब्दावली तैयार हो सकती है। अभिनव ने नाट्यशास्त्र को ‘सर्वशिल्प  प्रवर्तकम’ कहा है। माने सभी कलाओं का प्रवर्तन इसी से है। 

नाट्यशास्त्र असल में अर्थ की अनंत संभावनाएं लिए है। जितना इसके मर्म में उतरेंगे कलाओं की भारतीय दृष्टि से भी गहरे से साक्षात् होते जाएंगे। इसका पारायण करते यह भी निरंतर अनुभूत किया है कि इसके जरिए भारतीय कलाओं से जुड़ी पूरी की पूरी एक शब्दावली तैयार हो सकती है। 

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