ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Sunday, April 3, 2022

यात्रा वृतान्त 'नर्मदा के कंकर सब शिवशंकर'


धुन के धनी संपादक मित्र हरीश बी. शर्मा के संपादन में प्रकाशित

​ 'कथारंग वार्षिकी 2022—2023' में प्रकाशित यात्रा वृतान्त... 








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