ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Wednesday, March 30, 2022

ललित कलाओं में राजस्थान

 राजस्थान साहित्य अकादमी की पत्रिका 'मधुमती' में ...

आभारी हूं, संपादक डॉ. ब्रजरतन जोशी का जिन्होंने यह लिखवा लिया।

 "साहित्य और कलाओं की दृष्टि से हमारे पास समृद्ध-संपन्न परम्परा तो है पर इस परम्परा को पुनर्नवा करने, इससे समाज को बौद्धिक रूप में संपन्न करने, मूर्धन्य प्रतिभाओं और उनके विपुल अवदान से नई पीढ़ी को साक्षात् कराने का कोई जतन इधर नजर नहीं आता है। अतीत में झांकेंगे तो पाएंगे राजस्थान सांस्कृतिक दृष्टि, सांस्कृतिक मूल्यों से आरम्भ से ही संपन्न रहा है। संगीत, नृत्य, नाट्य, चित्रकला और यहां तक कि स्थात्यकला का यह प्रदेश आरम्भ से ही गढ़ सा रहा है, पर सोचिए! कलाओं, स्थापत्य की हमारी धरोहर में कहीं किसी स्तर पर इधर बढ़त हुई है? ..."














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