ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, June 1, 2024

कला, कलाकार और कला—बाजार

 हुरुन रिसर्च इंस्टीट्यूट ने 'इंडिया आर्ट लिस्ट-2024'  जारी की है। इसके अनुसार विश्व बाजार में भारत के प्रमुख कलाकारों की कलाकृतियां 301 करोड़ रुपये में बिकी हैं। कलाकृतियों की बिक्री के यह आंकड़े उत्साह जगाने वाले हैं। पर इसके बरक्स सच यह भी है कि बहुत बेहतर कलाकृतियां सिजने वाले कलाकार की कलाकृति अभी भी करोड़ों क्या हजारो में ही बिक नहीं पाती है।  

राजस्थान पत्रिका, 1 जून 2024

यह कहना तो ठीक नहीं होगा कि जो कलाकृतियां बिकती हैं
, वह बेहतरीन नहीं होती परन्तु इतना सच अवश्य है कि जो इन्हें खरीदता है, प्राय: वह कलाकृतियों की उत्कृष्टता की कसौटी की बजाय उनमें निवेश की अच्छी संभावनाएं तलाशता है। कला के बाजारोन्मुख भूमंडलीकरण स्वरूप में कलादीर्घाएं इधर उपभोक्ता और उत्पादक के रूप में जो कार्य करने लगी है! कलाकृतियों में निवेश की बढ़ती प्रवृति ने कला बाजार को तो पंख लगाए हैं परन्तु इससे सृजन सरोकार बाधित भी हुए हैं।

विचारमाध्यम और तकनीक के हो रहे अधुनातन परिवर्तनोंप्रयोगधर्मिताओं की बजाय बाजार यह बताने में ज्यादा रूचि लेता है कि कौनसे कलाकार ने कीमतों का रिकॉर्ड तोड़ा है। हुरुन रिसर्च इन्स्टीट्यूट ने 2019 में पहले—पहल 'इंडिया आर्ट लिस्टजारी की थी। हर वर्ष जारी इस सूची में बहुत से चेहरे अब तक वही है। कभी कोई पहले स्थान पर होता है तो कभी दूसरातीसरा या दसवां।  जब बड़े-बड़े पूंजीपति,  व्यवसायी और आर्ट गैलरियां ही कला में प्रमुख होंगे तो बाजार मूल्य प्रमुख होगाकलाकार गौण।

किसी जमाने में कला—रसिक उद्यमी कलाकृतियों की उत्कृष्टता आधार पर कलाकारों को आश्रय देते थे।  बद्री विशाल पित्ती को ही लें। वह देश के बड़े व्यवसायी थे परन्तु कला प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने का कार्य भी उन्होंने निरंतर किया। हुसैन ने अपने आरंभिक दौर में उनके आग्रह पर रामायण और महाभारत की कलाकृतियां सिरजी थी। ब्रिटेन की महारानी ने आजादी से पहले अवनीन्द्रनाथ टैगौर की तिष्यरक्षिता कलाकृति देखी और बस देखती ही रह गई। उसने इसे खरीद लिया था। अवनीन्द्रनाथ तब इतने चर्चित नहीं हुए थे पर अपनी कला के कारण उनका बाद में बड़ा स्थान बना। राजा रवि वर्मा ने भारतीय परिवेशमिथकोंपुराणों को आधार बनाकर अर्थगर्भित कथा—चित्र सिरजे तो वे अपनी मौलिक दृष्टि से जगचावे हुए। तब बाजार की बजाय कला में निहित गुण ही उसका मूल्य हुआ करता था। आनंद कुमार स्वामी ने बंगाल के कलाकारों पर जब लिखा तो विश्व भर का ध्यान भारतीय कला पर गया। माने बाजार नहींकला की उत्कृष्टता से कलाकार सदा प्रकाश में आता रहा है।

लोक कलाकार बहुत से स्तरों पर अपनी परम्पराओं संग अभी भी बहुत महती सिरज रहे हैं पर उन्हें दो जून की रोटी नसीब नहीं होती। इसके ठीक उलट लोक कलाओं को बाजार की भाषा में रूपान्तरित कर बाजार की समझ वाले कलाकार लाखों-करोड़ो कमा रहे हैं। बाजारोन्मुख भूमंडलीकरण में कला जीवन के उपादान रूप में नहीं होकर जिस तरह से बाजार प्रायोजित हो रही हैउससे औचक कला का महत्व बढ़ता हुआ भले हमें लगे परन्तु भविष्य में कला क्या इससे आम जन से निरंतर दूर नहीं होती चली जाएगी!

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