'रंग संवाद' का नया, पर महती अंक हबीब तनवीर पर केन्द्रित है।
संपादक विनय उपाध्याय का आभारी हूं कि उनके आग्रह पर यह लिख सका--
"हबीब तनवीर ने लोक से जुड़ी संवेदना को अपने नाटकों के रूपबंध में गहरे से गुना और बुना है। लोक नाट्यों का ध्येय मनोरंजन प्रायः रहा है, पर हबीब तनवीर के नाटकों को देखेंगे तो यह भी पाएंगे कि उन्होंने अनुभूति की सार्थकता में आधुनिक कथानकों में लोक नाट्यों की सहज संप्रेष्य दृष्टि तो ली है परन्तु उनमें रूप की कलात्मकता में विचार सघनता की मौलिक समझ घोली है। यह शायद इसलिए भी हुआ है कि नाट्य की जो शास्त्रीय परम्परा है, उससे उनके निकट के सरोकार रहे हैं। इसलिए भी कि पश्चिम की नाट्यशैलियों से भी उनका जुड़ाव रहा। उनका समग्र नाट्यकर्म आधुनिक रंग दृष्टि में लोक नाट्यों की परम्परा के सामयिक संदर्भ और उनमें छूटने वाली सधी हुई वास्तु संरचना का अनूठा शोध है।...
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