ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Friday, March 14, 2025

साहित्य अकादेमी, दिल्ली के साहित्योत्सव 2025 में व्याख्यान

साहित्य अकादेमी के 'साहित्योत्सव 2025' में उद्घाटन सत्र के दिन उत्तर—पूर्वी और पश्चिमी भारत की लोक संस्कृति विषयक व्याख्यान देने जाना हुआ...

बहुत कुछ नया पाया। लोक—आलोक लिए।   अरसे बाद कुछ अग्रजों से, बहुत से आत्मीय मित्रो से मेल—मुलाकात भी संपन्न करने वाली रही...साहित्य के बाजारू उत्सवों से यह अपने ढंग का सहज—सुनियोजित उत्सव होता है। भारत—भर के साहित्य की सुगंध लिए...






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