ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Sunday, April 6, 2025

साहित्योत्सव पर

 'अमर उजाला' नई दिल्ली और 'नवभारत' रायपुर में साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित एशिया के सबसे बड़े साहित्योत्सव पर लिखा है—

अमर उजाला, 19 मार्च 2025

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