छायांकन दृश्यबंध कला है। एक दृश्य में और भी अनदेखे बहुत से दृश्यों को उद्घाटित करने की कला। कैमरा वहां प्रमुख नहीं होता, उससे दृश्य सिरजने वाला महत्वपूर्ण होता है। यह यथार्थ का कलान्वेषण है। कैमरा बरतने वाला यदि कला—मन का होगा तो वह देखे—अदेखे की लय, गति और यति (ठहराव) को भी सौंदर्य प्रदान कर देगा।
विश्व छायांकन दिवस फोटोग्राफी से जुड़ी कला, इसके विज्ञान और इतिहास से ही नहीं जुड़ा है, यह इसमें निहित शिल्प का समर्पण है। कलाओं की वैदिक कालीन संज्ञा शिल्प कही गयी है। शिल्प माने संगीत, नृत्य, नाट्य, वास्तु, चित्र और तमाम दूसरी कलाएं। शिल्प का अर्थ ही है, गढ़ना। सृजन के उत्स संग कौशल। छायांकन कला छवि में निहित सुंदर—असुंदर का भाव—भव है। सुप्रसिद्ध यूनानी कवि होमर ने कभी कहा था, जो अभिनव है वही सुन्दर है। छायांकन कला का सच भी यही है। मानव मन की संवेदनाओं, छाया—प्रकाश संयोजन और एक ही दृश्य में बहुत सा और भी जब चाहे आप वहां तलाश सकते हैं। अच्छा छायाचित्र वही होता है जिसे देखकर फिर से देखने का मन करे। छायांकन ही क्यों, दूसरी सभी कलाओं संग भी यही होता है। कुछ सुना और बार—बार सुनने का मन करे, नृत्य की कोई भंगिमा देखी और फिर से देखने को उत्सुक हों, कलाकृति को निहारा और फिर से उसके रंगों की लय में मन भटके—समझ लें वह अनुकरण नहीं अनुकीर्तन है। माने गुणगान!
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पत्रिका, 19 अगस्त 2025 |
चीजें स्थिर रहें, मौन रहें तो
उदासी पसरती है। पर छायांकन
सन्नाटे का छंद है।
जर्मनी के ज्योतिर्विद और
वैज्ञानिक जॉन हर्शेल ने
1839 ईस्वी में अपने एक
मित्र को लिखे पत्र
में पहले पहल फोटोग्राफी
शब्द का इस्तेमाल किया
था। इससे पहले 1826 में
फ्रांसीसी आविष्कर्ता निप्से ने विश्व का
पहला फोटोग्राफ लिया। इसे देखकर पेरिस
में चित्रकार प्राध्यापक पॉल देला रोष
ने कहा था कि
चित्रकला आज से मर
गयी है। पर आज
फोटोग्राफी चित्रकला को समृद्ध कर
रही है। मुझे लगता है,
दृश्य को पकड़ते बहुतेरी
बार छायाकार उस निःसंग को
भी पकड़ता है जिसमें मौन
भी हमसे बतियाता है।
इसीलिए कहा जाता है,
हजारों-हजार शब्दों में
जो नहीं कहा जा
सकता वह एक छायाचित्र
कह देता है। छायांकन
और दूसरी सभी कलाएं प्रकृति
का रूपान्तरण है। वहां एकरसता
नहीं है। एकरसता ऊब
पैदा करती ह छायांकन
में आकाश का नीला सुहाता है। पर आकाश
नीला कहां होता है!
सूर्य के प्रकाश में
बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला नारंगी
और लाल रंग घुला
होता है। यह उजास
जब वायुमंडल में प्रवेश करता
है, तो विभिन्न गैसों
और धूल-कणों से
टकराता है। रेले स्कैटरिंग
प्रभाव से नीला और
बैंगनी रंग तब अधिक
बिखरता हैं। लाल और
नारंगी कम। प्रकाश के
एक छोर से दूसरे
छोर तक की दूरी
में चूंकि हमारी आँख नीले के
प्रति अधिक संवेदनशील होती
है। सो हमें आकाश
नीला दिखता है। सूर्य किरणों
को उदय या अस्त
होने के समय चूंकि
पृथ्वी तक पहुंचने में
अधिक दूरी तय करनी
पड़ती है, इसमें नीला
और बैंगनी पूरी तरह बिखर
जाता हैं और केवल
लाल, नारंगी और पीला ही
आँखों तक पहुँच पाता
हैं। इसीलिए सूर्योदय और सूर्यास्त में
आकाश बहुतेरी बार सिंदूरी अनुभूत
होता है। छायांकन कला
दृश्य में निहित रंगों
का पुनराविष्कार करती है। कैमरे
में जो लेंस लगे
होते हैं वह दृश्य
में निहित रंगों में सुधार कर
हमें परोसते हैं। माने वहां
वस्तु, किसी मुद्रा में
निहित प्रकाश कम—ज्यादा है
तो उसे नियंत्रित कर
इच्छित परिणाम ले सकते है।
यही छायांकन की कला—साधना
है।
राजा रवि वर्मा प्रातः
चार बजे उठते और
चित्र बनाते। क्यो? इसलिए कि तब भोर
का उजास छा रहा
होता और रात्रि के
अंधकार का गमन हो
रहा होता है। प्रकृति
के इन रंगों की
अनुभूति उन्होंने चित्रों में संजो ली।
छायांकन में भी तो
यही होता है! वहां
समय ध्वनित होता हममें बसता
है। वामन ठाकरे बड़े
चित्रकार हुए पर चुना
उन्होंने फोटोग्राफी को। कहते हैं,
पूर्व राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद का
चेहरा फोटोजेनिक नहीं था। वह
चाहते थे उनका ऐसा
फोटो निकले जो सुंदर हो।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय
के ख्यातनाम छायाकारों ने प्रयास किया
पर पार नहीं पड़ी।
अंतत: वामन ठाकरे को
याद आये। वह पहुंचे
और जो लोग राष्ट्रपति
से मिलने आ रहे थे,
उनके साथ बतियाते उन्हें
देखते रहे। लम्बा समय बीत गया।
राष्ट्रपति ने कहा 'तुम
फोटो क्यों नहीं ले रहे
हो?' ठाकरे ने कहा, 'वही
तो कर रहा हूं।'
फ़ख़रुद्दीन चौंके। असल में वामन
उनके भांत—भांत के
पोज देख रहे थे।
अंतत: एक पोज को
कैमरे में उन्होंने संजो
लिया। यह इतना सुंदर
था कि वही बाद
में सार्वजनिक प्रसारित हुआ। आपको भी
तो ऐसा ही अपना
कोई अनायास लिया छायाचित्र भा
रहा होगा! कला की यही
साधना है। किसी एक
दृश्य में छायाकार घंटो
तपता है या अनायास
को लपक लेता है,
तब कहीं वांछित पाता
है। इसीलिए कहूं, छायांकन प्रकृति में घुले रंगो,
दृश्य—छटाओं, व्यक्ति की भंगिमाओं से
भरा—भाव भव है।
छायांकन के सृजन स्रोतों
पर जाएंगे तो संस्कृति, परम्परा,
इतिहास को वहां ध्वनित
होते पाएंगे। क्षण जो बीत
गया है उसकी स्मृतियां
भी झिलमिलाती वहां नजर आएगी।
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