"..पंडित शिवकुमार शर्मा का संतूर आत्म से साक्षात्कार कराता ध्वनियों का ध्यानगान है.प्रकृति की भांत भांत की छटाओं को हममें बसाता औचक वह हमें जैसे आनंद घन करता है...संतूर में उन्होंने शास्त्रीयता की शुद्धता को बरकरार रखते हुए निरंतर नवीन प्रयोग किए।...उन्होंने भारतीय संगीत की लगभग सभी परम्पराओं से संतूर को जोड़ा तो रागों के अनुशासन में रहते हुए भी उनके जड़त्व को निरंतर तोड़ा। "...
ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Wednesday, August 3, 2022
लोकप्रिय पत्रिका "आजकल" में पंडित शिवकुमार शर्मा

Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment