राजस्थान पत्रिका, 27 जुलाई 2024
बरखा की बूंदे आनंद 'रस' की सृष्टि करती है। इस बार जब वर्षा हो रही हो तो बूंदों पर गौर करें। उन्हें देखें नहीं, सुनें भी। टप—टप स्वरों में कविता होता मन जैसे गाने लगेगा। कभी ऐसे ही बरसती बरखा बूंदों को सुन—गुन कर ही तो स्वाति ऋषि ने मृदंग जैसे विरल वाद्य का आविष्कार किया था। कथा है, स्वाति ऋषि आश्रम में बैठे थे। मेघ गर्जन सुन उनकी नजर औचक रीते जलपात्र पर गई। खाली घड़ा देख वह उसे भरने निकट के सरोवर पहुंचे। तभी तेज हवा के साथ मेघाछन्न आकाश से बूंदे गिरने लगी। सरोवर के कमल पत्रों पर बूंदो की बोछार से स्वरों का मधुर नाद होने लगा। स्वाति ऋषि ने अनुभूत किया, कभी तेज तो कभी धीरे होती बूंदे कमल पत्रों पर आरोह—अवरोह का अनूठा स्वर—उजास रच रही है। सरोवर-जल पर बरखा बूंदे पड़ती तो वह तरंगित होता। पवन के झोंको की सरसराहट, वर्षा बूंदों का घूंघरूओं सा स्वर और सरोवर के कमल—पत्र पर कंपन! स्वाति ऋषि भूल गए कि बरखा हो रही है। वह भीगते रहे और नृत्य के आद्य गुरू शिव की नृत्य मुद्राओं की अनुभूत छवियों के अनुरूप उन्होंने वाद्य यंत्र मृदंग का आविष्कार कर दिया। यही होता है। सुनने के साथ उसे गुनें तो बहुत कुछ महती हम पा सकते हैं। प्रकृति में घुली लय सदा ही अनूठा सृजन करवाती है।
याद है, अरसा पहले तानसेन समारोह में जाना हुआ था। तब पहली बार शहनाई जैसा पर उससे आकार में बहुत छोटा एक वाद्य यंत्र सुना था। कलाकार भीमन्ना जाधव उसे साध रहे थे। पूछने पर पता चला यह सुंदरी है। शहनाई की छोटी बहन! उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने इसे यही नाम दिया। कहते हैं, अक्कलकोटला के महाराजा फतेहसिंह भोसले ने जब अपना भव्य महल निर्मित करवाया तब पहली बार सुंदरी की मंगल ध्वनि सार्वजनिक हुई। सबने इसे बहुत सराहा। बाबूलाल जाधव ने हथकरघा कपड़ा बुनाई के लिए धागे को लपेटने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी के पाइप-बॉबिन से इसे आविष्कृत किया। उन्होंने बॉबिन में आठ छेद कर ताड़ के पेड़ों की पत्तियां डालकर उसका परीक्षण किया। ध्वनि बड़ी आनंददायक थी। बस उन्होंने और प्रयोग किए और शहनाई सी मीठी धुन का वाद्य यंत्र तैयार हो गया।
हीराबाई बडोदकर के संरक्षण में पंडित सिद्धराम जाधव ने इस वाद्य में शास्त्रीय रागों का मधुर घोल किया। हाल के वर्षों में भीमन्ना जाधव ने इसमें बढ़त कर इसे लोकप्रिय किया है। याद है, पंडित जसराज के साथ एक दफा सुंदरी सुन रहा था तो उन्होंने इसे शहनाई बहन 'मधुरा' कहा था। सच है, सुंदरी कानों में शहद सा रस घोलती है। सुनेंगे तो मंगल और शुभता के महीन स्वरों से साक्षात् होंगे। कभी मध्यप्रदेश स्थित भारत भवन ने तीन दिवसीय सुंदरी समारोह आयोजित किया था। इसमें इस लोक वाद्य की जो शास्त्रीय छटाएं बिखरी थी, अभी भी लोग उसे कहां भुला पाए हैं!
हमारे यहां मंदिर की दिवारों पर उत्कीर्ण कलाकृतियों में भी मंगल वाद्यों में सुंदरी सा कोई वाद्य यंत्र बजता दिखता है। सोचता हूं, कईं बार परम्पराएं संरक्षण के अभाव में लुप्त हो जाती है। पर काल के अंतराल में फिर से कोई हवा का झोंका आता है, मानव—मन आंखो से देखे, अनुभव किए वाद्यों का पुनराविष्कार कर देता है। सुंदरी ऐसा ही वाद्य यंत्र है। भीमन्ना जाधव निरंतर सुंदरी में माधुर्य की छटा बिखेरते रहे है। वह बहुत सारी रागो में विलंबित एक ताल की बंदिशें और मिश्र पहाड़ी धुनों का इसमें प्रवाह करते हैं तो मन करता है,सुनें और बस सुनते रहें।