ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, July 13, 2024

सभ्यता और संस्कृति

"कलाएं क्या है? मिथकों, धार्मिक विश्वासों और दैनिन्दिनी कार्यकलापो में जीवन से जुड़ी सहज दृष्टि ही तो! कोई एक कला अपने आप में पूर्ण नहीं होती, दूसरी में घुलकर ही वह संपूर्णता को प्राप्त करती है। नृत्य, संगीत, नाट्य संग वास्तु और मंदिर स्थापत्य का मेल कर उदयशंकर ने कलाओं के अन्त:सबंधों को साधा। इसी से वह भारतीय नृत्य के विश्वभर में अग्रदूत हुए। आनंद कुमार स्वामी चित्र और मूर्तिकला के जिस तरह से भारत—प्रवक्ता बने, मुझे लगता है—पश्चिम में भारतीय नृत्य के वैसे ही अग्रदूत उदयशंकर हुए। यह विडम्बना ही है कि हमने उन्हें इस अवदान को बहुत अधिक स्मरण नहीं किया है।..." 

पत्रिका, 29 जून 2024


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