'दैनिक जागरण' में...
आज पंडित पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी का जन्म दिन है। कल से उनकी बांसुरी की तान में ही मन बसा है। मुरली की अलौकिक तानों में शास्त्रीय के साथ जिस तरह से लोक संगीत की मिठास उन्होंने घोली है, वह विरल है। सरोद, सितार और शहनाई के वर्चस्व दौर में बांसुरी को स्वतंत्र वाद्य के रूप में उन्होंने स्थापित ही नहीं किया, इस वाद्य में भाव—संवेदनाओं से जुड़ी अनुभूतियों का अद्भुत—अलौकिक संसार रचा। मुझे लगता है, वह इस दौर के विलक्षण वेणु—साधक हैं।...ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Saturday, July 13, 2024
पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी का जन्म दिन

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