'दैनिक जागरण' में...
आज पंडित पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जी का जन्म दिन है। कल से उनकी बांसुरी की तान में ही मन बसा है। मुरली की अलौकिक तानों में शास्त्रीय के साथ जिस तरह से लोक संगीत की मिठास उन्होंने घोली है, वह विरल है। सरोद, सितार और शहनाई के वर्चस्व दौर में बांसुरी को स्वतंत्र वाद्य के रूप में उन्होंने स्थापित ही नहीं किया, इस वाद्य में भाव—संवेदनाओं से जुड़ी अनुभूतियों का अद्भुत—अलौकिक संसार रचा। मुझे लगता है, वह इस दौर के विलक्षण वेणु—साधक हैं।...
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