ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, July 13, 2024

कलाओं की अंतर्दृष्टि


"डॉ. राजेश कुमार व्यास की पुस्तक "कलाओं की अंतर्दृष्टि" को पढ़ते हम कलाओं के मर्म में प्रवेश करते हैं।... भारतीय इतिहास, हमारी संस्कृति और गर्व करने लायक थाती पर विचार करने के लिहाज से यह पुस्तक अद्भुत है।...इस किताब में योग से लेकर मूर्ति, शिल्प, चित्र, नृत्य, नाट्य या गायन कला के विभिन्न पहलुओं का विवेचन किया गया है।
—पृथ्वी परिहार
 'स्वर सरिता' पत्रिका, जुलाई 2024


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