"आषाढ़ माने वर्षा ऋतु की शुरूआत।...इसी आषाढ़ माह के प्रथम दिन कालिदास ने आकाश पर उमड़ते—घूमड़ते मेघ देखे और कालजयी ‘मेघदूत’ रच दिया। थेरगाथाओं में वर्षा ऋतु से जुड़े अनुभव देखें, 'हे देव! मन भर बरसो। मेरी कुटी सुखदाई है।'मेघ बरसते हैं तो मन हरखता है। ...आषाढ़ में मेघ बुलाने के लिए भी तो कितने—कितने जतन होते रहे हैं। ख्यात कलाकार विद्यासागर उपाध्याय और विनय शर्मा ने मिलकर व्योम आर्ट गैलरी में 'रंग मल्हार' को एक रूप प्रदान किया था। आरंभ में पचास कलाकार एकत्र हुए और छातों को कैनवस बनाते हुए उन पर बादलों को रिझाने के लिए चित्र सिरजे गए। सफेद कैनवस के छातों पर रंग—रेखाओं का सुंदर संसार रचा गया। इसके बाद तो हर साल यह आयोजन होने लगा।... संस्कृति कला—रूपों में अभिव्यक्ति पाकर जीवन को ऐसे ही पोषित करती है। 'रंग मल्हार' में निहित कला की विचार—दृष्टि महती है। इसलिए कि इसके जरिए भारतीय परिप्रेक्ष्य में कला से जुड़ी सांस्कृतिक दृष्टि रूपायित हो रही है। इसलिए भी कि यह वर्षा के आमंत्रण से जुड़े विशिष्ट भारतीय कला दर्शन को इंगित पहल है। और इसलिए भी कि घोर व्यावसायिकता के इस दौर में स्व—प्रेरणा से बगैर किसी लाभ—हानि के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समूहीकृत कर कला से जुड़ी कोई पहल को इससे पंख लगे हैं।.."
ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Saturday, July 13, 2024
कला—रूपों में अभिव्यक्त सांस्कृतिक दृष्टि

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