ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, September 21, 2024

नृत्य में लालित्य की भारतीय दृष्टि

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राजस्थान पत्रिका, 21 सितम्बर 2024

..इस 26 सितम्बर को उदय शंकर का हमसे बिछोह हुए 47 साल हो जाएंगे पर उनका नृत्य और प्रयोगधर्मिता विश्वभर में आज भी जीवंत है। असल में नृत्य देह का राग है। ऐसा जो मन को रंग दे। उदय शंकर का नृत्य ऐसा ही था। उन्होंने कलाओं के अंत:सबंधों का नृत्य लालित्य रचा।

...यह मान लिया गया है कि परम्परागत जो हॅै, उसका कुशलता से निर्वहन ही नृत्य निपुणता है। पर उदय शंकर ने इस मिथक को तोड़ा। बैले, भरतनाट्यम, कथकली, कथक, ओडिसी, गवरी आदि नृत्यों के घोल में उन्होंने नृत्य की अनूठी भारतीयता रची।...एलिस बोनर ने उनका नृत्य देखा तो बस देखती ही रह गई।

अन्ना पावालोवा ने उन्हें एक दफा देखा, पाया अजंता के किसी देवता ने मानव शरीर धारण कर लिया है। मूलत: उदय शंकर चित्रकार थे, अन्ना पावालोवा के साथ पहली बार राधा—कृष्ण बैले में कृष्ण बने तो बस नर्तक ही बनकर रह गए।

अमला शंकर ने उनके नृत्य पर मोहित होकर ही उनसे विवाह किया। उदयशंकर—अमला की विश्व की बेहतरीन 'कल्पना' फिल्म भी आई। यह सुमित्रानंदन पंत के कथ्य—काव्य पर आधारित थी...

Sunday, September 8, 2024

'चिनार पुस्तक महोत्सव

'अमर उजाला' में...

कुछ दिन पहले श्रीनगर जाना हुआ था। 'चिनार पुस्तक महोत्सव' के एक सत्र 'पुस्तकें, पाठक और जीवन' पर बोलने के लिए। पत्रकार कंकणा लोहिया से जब संवाद कर रहा था, कश्मीर भ्रमण और वहां बिताए दिनों से जुड़ी कहानियों को लेकर युवाओं में विशेष आकर्षण पाया। सत्र के बाद युवाओं ने बड़ी संख्या में प्रश्न किए। मूल प्रश्न इस बात के इर्द—गिर्द थे कि लिखें कैसे? अभिव्यक्ति के रास्ते कैसे खुले? अपनी ओर से इनका समाधान किया परन्तु निरंतर मन में यह अनुभूत भी होता रहा कि कश्मीर में बदलाव आ रहा है। अभिव्यक्ति के बहाने युवा जीवन की नई राहों की ओर प्रस्थान करने को उत्सुक हैं।...
अमर उजाला, 8 सितम्बर 2024


गान का माधुर्य आगरा घराना

 "दैनिक जागरण" सोमवार के "सप्तरंग" में...

"...ख्याल क्या है? कल्पना में गूंथी दृष्टि ही तो! पर ख्याल गायकी और ध्रुवपद के मेल से गान का माधुर्य रस कहीं छलकता है तो वह आगरा घराना है... उस्ताद वसीम खान को ही सुन लें। लगेगा तानों के अनूठेपन में स्वरों की अनंत शक्ति, सौंदर्य उजास से वह जैसे साक्षात् कराते हैं...

दैनिक जागरण, 19 अगस्त 2024



Saturday, September 7, 2024

दृश्य के पार अदृश्य का मनोरम रचते हालोई

पत्रिका, 24 अगस्त 2024

बंगाल कलाओं की उर्वर भूमि है। यहीं से ब्रिटिश राज में भारतीय कला की आधुनिक दृष्टि 'बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट' का प्रसार हुआ। अवनीन्द्रनाथ ठाकुर इसके प्रवर्तक थे।अबन ठाकुरके रूप में उनका बाल साहित्य भी तो बंग्ला साहित्य की अनुपम धरोहर है! उनकी कलाकृतियों में बरते रंगों में भी सदा किसी मासूम बच्चे की सी खिलखिलाहट अनुभूत की है। यह महज संयोग ही नहीं है कि यही खिलखिलाहट अमूर्तन में कला की इस दौर की भाषा रचने वाले गणेश हालोई के चित्रों में भी है। वह भी बंगाल के ही हैं।

कुछ समय पहले कोलकाता जाना हुआ तो उनके निवास स्थान जाने का भी संयोग हुआ। प्रयाग शुक्ल जी और कलाकार यूसुफ के संग उनसे बतियाना हुआ। लगा किसी संत से भेंट हो रही है। सहज, शांत और निश्छल व्यक्त्तिव! उनकी कलाकृतियों में भी यही सबसमाया है। कला की परिपक्वता पर दृश्य का अनूठा अबोधपन! अमूर्तता पर उसको समझने की जटिलता नहीं। सीधी, वक्र, लहरदार रेखाएं पर उनमें समाई अनूठी लय। जितना दृश्य का मनोरम वहां है, उतना ही अदृश्य की एकरसता भंग करने वाली साधना भी।

गणेश हालोई न्यूनतम रेखाओं में छवियों का आकाश रचते हैं। वह कहते भी हैं, 'अमूर्ततता ही सुंदर होती है। वास्तविकता दम घोंटने वाली होती है।' सत्तर के दशक में उन्होंने 'मेटास्केप' चित्र शृंखला सिरजी थी। मुझे लगता है यह यथार्थ से बिम्ब, प्रतीकों और भावों की ओर उनका कलाप्रस्थान था। कभी उन्होंने अजंता में रहकर भित्ति चित्रों की प्रतिकृतियां बनाई थी। पर अचरज होता है, उनके सिरजे में भारतीय कला की वह सुगंध तो है पर उसका अनुकरण नहीं है। सूफियाना फक्कड़पन वहां है। कैनवस और कागज पर उन्होंने धान के खेत, घास के मैदान, रहस्यमय नदियां, पहाड़, गुफाओं और जीवन से जुड़ी कहानियां सिरजी है। बंग्ला कवि जीवनानंद दास की कविताओं के तत्वों को भी उन्होंने अपनी कलाकृतियों में जीवंत किया है। बंगाल की भूमि और उसकी जलवायु को रंगों की सतहों संग क्षणभंगुर ब्योरों में उन्होंने सहज ही कैनवस पर उकेरा है। धूप, हवा, बहती नदी, सूरज की किरणें, बरसते बादल, बरखा की बूंदे और पलपल बदलता मौसम और इनसबमें घुलती और औचक लोप होती सी मानवीय आकृतियां भी। उनके घर पर जब बैठे बतिया रहे थे, उनने कहा, 'चित्रकला समझ से प्रारंभ होती है और आश्चर्य पर समाप्त होती है।' उनकी कलाकृतियों का सच यही है।

अपनी कलाकृतियां  दिखाते, कविताएं सुनाते कोई दिखावा, प्रदर्शन नहीं। प्राय: ऐसा नहीं करता पर मैं अपने को रोक नहीं पाता और वहीं किताबों के पास पड़े एक आमंत्रण पत्र को उठा लेता हूं। उन्हें सौंपते हुए ऑटोग्राफ देने का आग्रह है । निश्छल मुस्कान संग वह वह पैन से कुछ बनाने लगते हैं। तीन छोटी खड़ी रेखाएं, उनसे निकली कुछ टहनियां सी, जल का आभास कराती लहरदार रेखाएं, टेढ़ी और उन्हें क्रॉस करती और दो रेखाएंपक्षी का अहसास कराती एक आकृति और किनारे जल किनारे टापू सा बना कुछ! ठीक से वर्णित नहीं कर सकते, क्या बना है, पर मनोरम। वह हस्ताक्षर करते हैं और मेरा नाम लिखकर सौंप देते हैं।

अनुभूत करता हूं, गणेश हालोई दृश्य के पार जाते हैं। अंतर्मन उजास में अनुभूतियों का विरल रचते हैं। प्रकृति की लय का जैसे सांगीतिक छंद। हरे, नीले, पीले और धूसर में उन्होंने संवेदनाओं का उजास उकेरा है। रोशनी और अंधेरा पर स्पेस का अद्भुत विभाजन! भले ही उनके चित्र अमूर्त हैं, पर वहां दृश्य की सुगंध इस कदर समाई है कि बारबार रिझाती वह अपने पास बुलाती है।

लौट रहा, कथाओं में घुला दृश्य—कला जग

इस वर्ष के आरंभ में हुए एक सवें में पाया गया है कि भारतीय युवाओं में कॉमिक्स पढ़ने की रूचि में तेजी से बढ़त हो रही है। युवा सुपर हीरो बैटमैन, सुपरमैन, स्पाइडर मैन आदि की चित्रकथाओं के साथ ही जापानी चित्रकथाओं, जिन्हें 'मांगा' कहा जाता है को बहुत पंसद करते हैं। कॉमिक्स छवियों संग शब्दों के सुनियोजित मेल से जुड़ी दृश्य कला है।  शब्द संग संकेतो में घुला दृश्य—जग! सहज संप्रेष्य। अमेरिका में पिछले वर्ष शिक्षण संस्थाओं में विषयों को पढ़ाने के लिए उनका कॉमिक्स—रूपान्तरण किया गया। विद्यार्थियों ने इसे बहुत पंसद किया। 

पत्रिका, 7 सितम्बर 2024

हमारे यहां 'अमर चित्र कथा' घर—घर चाव से पढ़ी जाती रही है। लोकाख्यानों से लेकर पुराण, मिथकों और किंवदंतियों का अनुपम संसार इसी के जरिए बहुत से स्तरों पर बच्चों से लेकर बड़ों तक सहज पहुंचा। पर यह आसान कहां था! 'अमर चित्र कथा'  सर्जक थे—अनंत पै। वह पहले टाइम्स समूह में नौकरी करते थे। मैनड्रेक, द फैंटम आदि चरित्रों से जुड़ी इन्द्रजाल कॉमिक्स शृंखला का प्रकाशन टाइम्स समूह ने ही किया था। एक दिन अनंत पै ने जब दूरदर्शन पर प्रसारित प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम देखा तो अंदर से हिल गए। प्रतिभागियों ने ग्रीक पौराणिक कथाओं से जुड़े सवालों के जवाब तो तुरंत दे दिए, लेकिन भारतीय पौराणिक कथाओं से जुड़े एक भी सवाल का जवाब नहीं दे पाए। तभी अनंत पै ने तय कर लिया कि वह कुछ करेंगे। उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया की अपनी नौकरी छोड़ “अमर चित्र कथा” की शुरूआत की। इंडिया बुक हाउस के जीएल मीरचंदानी को इसके लिए उन्होंने राजी किया। यह वह समय था जब लोग चित्रकथाओं को हल्के स्तर की समझते थे। चित्रकथा प्रकाशन का पै का कार्य कार्य इसी कारण आरंभ में असफल रहा। पर वह हार मानने वाले नहीं थे। उन्होंने विद्यालयों से संपर्क किया। छात्रों के एक समूह को चित्रकथा का उपयोग कर और दूसरे समूह को पारंपरिक पुस्तकों से इतिहास पढ़ाया गया। दोनों समूहों का जब परीक्षण हुआ तो पाया गया, जिन्होंने चित्रकथा से अध्ययन किया वह इतिहास को अधिक ढंग से समझे। उनके इस प्रयोग ने थोड़े समय में ही क्रांति ला दी। 'अमर चित्र कथा' घर—घर में लोकप्रिय हो गयी। अनंत पै ने झाँसी की रानी, शिव, कार्तिकेय, गणेश, कृष्ण और शिशुपाल, ह्वेन सांग आदि चरित्रों के साथ ज्ञान की भारतीय परम्परा से जुड़े विषयों को चित्रकथाओं में पिरोया। वह दौर भी आया जब अमर चित्र कथा के 86 मिलियन से ज़्यादा संस्करण बिके। राजस्थान में ब्रजराज राजावत ने मूमल महेन्द्रा, पद्मिनी, लोक देवता बाबा रामदेव, सैणी बीणा, सुक्खा ठग, अमृता देवी का बलिदान जैसी और भी बहुत सारी सुंदर चित्रकथाएं सिरजी है। पर व्यावसायिक दृष्टि और पहुंच की सीमा के कारण वह पाठकों तक ढंग से पहुंच नहीं पायी। 

इधर देश की नई शिक्षा नीति के अंतर्गत शिक्षा के सभी स्तरों के पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान परम्परा को सम्मिलित कर पढ़ाने की नीति पर जोर दिया गया है। सवाल यह उठता है कि क्या यह सहज संभव है? मुझे लगता है, कॉमिक्स इसमें खासा मदद कर सकते हैं। बच्चों ही नहीं बड़ों पर भी दृश्य—शब्द प्रभाव गहरा असर करते हैं। छवियों संग यदि शब्द पढ़ें जाए तो वह स्मृति में लम्बे समय तक जीवंत रहते हैं। पाठकीय बोझिलता वहां समाप्त जो हो जाती है! विश्वभर में इसीलिए इधर कथा—कहानियों के पुस्तक संस्करणों से कहीं अधिक ग्राफिक उपन्यासों का रूझान बढ़ रहा है। युवाओं के लिए जितनी रोचक सुपरहीरो और रहस्य—रोमांचक चित्रकथाएं हैं, उतनी ही भारतीय ज्ञान परम्परा से जुड़े विषय हो सकते हैं, बशर्ते उन्हें 'अमर चित्र कथा' की तर्ज पर प्रस्तुत किया जाए। कुछ समय पहले चुनाव आयोग ने मतदान—जागरूकता के लिए ऐसा सफल प्रयोग किया था। कॉमिक बुक "चाचा चौधरी और चुनावी दंगल" के जरिए युवाओं को अपना नामांकन करने और भाग लेने के लिए प्रेरित करने की पहल हुई थी। यह सच है, कथा कहती छवियां मन में गहरा असर करती है।