नाट्यशास्त्र ने सदा ही मन को मथा है। सुखद है, मर्मज्ञ विद्वानों ने मेरे आग्रह का मान रखते हुए इस ग्रंथ पर एकाग्र संपादन—कार्य में सहयोग किया। शुक्रवार 5 दिसम्बर 2025 को चंडीगढ़ में पंजाब के राज्यपाल श्री गुलाबचंद कटारिया ने इसका लोकार्पण किया। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन स्थापित उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के निदेशक, मित्र फुरकान खान जी की पहल पर नाट्यशास्त्र पर महती विमर्श से जुड़े इस संपादन कार्य को कर सका। उन्होंने बहुत सुंदर रूप में पुस्तक प्रकाशित की है। जब इसके संपादन के लिए कार्य प्रारंभ किया तब लगा था, लेखक—मित्र जल्द अपना लिखा भेज देंगे। पर, लेखकों से लिखवाना आसान कहां है! देवेन्द्र सत्यार्थी जी निरंतर याद आते रहे। वह 'आजकल' के संस्थापक—संपादक थे। उनसे संपादन अनुभव के बारे में एक दफा पूछा गया तो उनका कहना था, "लेखक से लिखवाना सबसे मुश्किल काम है।" मेरा यह अनुभव भी ऐसा ही रहा हैं। बार—बार आग्रह करता रहा। तगादे भी खुब किए कईं बार यही लगा, लिखना आसान है, लिखवाना कठिन! पर, कृतज्ञ हूं...उन सभी विद्वान लेखकों का जिन्होंने नाट्यशास्त्र पर लेखन—सहयोग किया। नाम पर जाएंगे तो 'नाट्यशास्त्र' नाट्य विधा से जुड़ा लगेगा पर गायन, वादन, नर्तन, अभिनय आदि के साथ कोई कला इससे अछूती नहीं है। यह विडंबना ही है कि कलाओं के मर्म में ले जाता नाट्यशास्त्र विमर्श में बहुत अधिक रहा नहीं। विश्वास है—इस दृष्टि से यह संपादन—कृति पाठकों को नाट्यशास्त्र की वृहद ज्ञान परंपरा से जोड़ती सर्वथा नया अनुभव देगी।
ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Saturday, December 6, 2025
नृत्य विसर्जन है...
'रंग संवाद', नवीन अंक में—
"...नृत्य विसर्जन है। देह से, अपने आप का। देह से परे चले जाना ही नृत्य की असल परिणति है। कालिदास के नाटकों में 'चलित' नृत्य का संदर्भ आता है। चतुष्पद आधारित इस नृत्य—रूप में नर्तक अभिनय करता भावों में गुम हो जाता है। हमारे सभी शास्त्रीय और लोक नृत्य इसी रूप में अनुष्ठान हैं। रूसी नर्तक निजिंस्की नृत्य करते इतनी ऊंची छलांग लगाया करते थे कि गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत धरे रह जाते थे। किसी ने उनसे पूछा नृत्य में आप यह कैसे करते हैं? निजिंस्की का जवाब था नहीं पता। नृत्य करते मैं लापता हो जाता हूं।"
Subscribe to:
Comments (Atom)




.jpeg)
.jpeg)
.jpeg)