'रंग संवाद', नवीन अंक में—
"...नृत्य विसर्जन है। देह से, अपने आप का। देह से परे चले जाना ही नृत्य की असल परिणति है। कालिदास के नाटकों में 'चलित' नृत्य का संदर्भ आता है। चतुष्पद आधारित इस नृत्य—रूप में नर्तक अभिनय करता भावों में गुम हो जाता है। हमारे सभी शास्त्रीय और लोक नृत्य इसी रूप में अनुष्ठान हैं। रूसी नर्तक निजिंस्की नृत्य करते इतनी ऊंची छलांग लगाया करते थे कि गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत धरे रह जाते थे। किसी ने उनसे पूछा नृत्य में आप यह कैसे करते हैं? निजिंस्की का जवाब था नहीं पता। नृत्य करते मैं लापता हो जाता हूं।"


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