ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, December 20, 2025

छायांकन—कला में समाई सौंदर्य—सृष्टि

पत्रिका, 20 दिसम्बर 2025

छायांकन  दृष्य- बंध कला है। दृश्यों में बाँधने की कला साधना। इसलिए तो कैमरे से निकली सुंदर छवियां  हमें भातीहै। किसी विशेष मुद्रा के भावों में हमारे अपने ही छाया चित्रों से हमें कई बार ऐसा मोह हो जाता है कि उनसे हम अपने को मुक्त नहीं कर पाते। छायाकार अनुभूतियों का सौन्दर्यान्वेषण करता है। देखने की विशिष्ट सूझ से दृश्यों का रूपक गढ़ता है। जो दिख रहा हैवही सत्य कहां होता है! सत्य उसमें निहित भाव भव होता है। स्थिर छायाचित्र में ही नहीं मूवी में भी  कैमरा साधन होता है, साध्य छायाकार की कला दृष्टि होती है। इसी से छायाकार यथार्थ को भी सौंदर्य- छटाओं में रम्य बनाता हमें लुभाता है।

फिल्मों में हीरो-हिरोइन सुंदर दिखते है।  क्या वह वास्तव में वैसे होते है?  हां, सुंदर बहुत सा होता है, पर उसे स्वप्न-सौंदर्य में रूपांतरित कैमरामैन करता है। राजकपूर की,  सत्यजित राय की और मणिकौल की फिल्में देखें। वहां दृश्यों में छाया-प्रकाश संवेदना की कथा कहते मिलेंगे ।  सिनेमेटोग्राफर  राधु करमाकर ने राजकपूर की प्रायः सभी फिल्मों में छायांकन किया। उनका अनुभूति आलोक है, "नर्गिस सर्वश्रेष्ठ सुंदरी नहीं थी। पर कैमरे में दिखती है।" यह सच है। असल में नर्गिस का व्यक्तित्व गरिमापूर्ण था। आभामंडल मोहक था। यह उसे फिल्माने वाले छायाकार थे जो चेहरे के उन भावों को पढ़ उसे अपनी छायांकन-कला में रूपांतरित कर देते थे। छायांकन में भाव, दृश्य में निहित संवेदना पढ़ना आना ही कला है।  इसीलिए कैमरे की आंख से नर्गिस गतिशील चेहरे में गरिमा संपन्न ऐसे भव्य सौंदर्य में हमें नजर आती है, जैसे ईश्वर रचित चेहरे से हम साक्षात हो रहे हैं। यह सब उनके चेहरे का जितना सच था उससे अधिक छायाकार की वह सौंदर्य दृष्टि है, जिसमें कैमरे ने इतने अच्छे कोणों से चेहरा संजोया कि वह अप्रतिम सौंदर्य बन हमें लुभाता है।

छायांकन कला का बड़ा सच क्षण जो घट  रहा है,  उसमें कुछ खास लगा त्वरित संजोना है। इसी से साधारण भी बहुत बार असाधारण या कालातीत बन जाता है। कैमरे की तकनीक अद्भुत तो कर सकती है पर सौन्दर्य का सृजन तो वह कला दृष्टि ही करती है जिसमें  दृश्य  के समानान्तर संवेदनाओं को सहेजा जाता है।  

कैमरामैन छाया प्रकाश की संवेदना और दूर, नजदीक में भाव भरने का अर्थ सामर्थ्य रखता है। इसी से दृश्य जितना सुंदर होता नहीं उससे अधिक सुंदर बन जाता है। फिल्मों में एक समय वह भी था जब हिरोइनें हीरो से नहीं अच्छे भविष्य के लिए कैमरामैन से विवाह करती थी। या कहें प्यार करने का कईं बार नाटक रचती थी। इसलिए कि कैमरामैन राजी नहीं तो सुंदर चेहरे का भी भद्दे कोण से चित्र ले अभिनेत्रियों का भविष्य चौपट कर देता था। आरंभिक अभिनेत्रियों में शांता आप्टे कैमरे से बाहर देखने में इतनी सुंदर नहीं थी पर उनका चेहरा सदा ही सुंदर दर्शाया गया। बकौल राधु करमाकर मूवी कैमरा प्रकाश के सहारे चित्रकारी करता है। जिंदगी, प्रकृति और समाज को देखने और मानव मन को आत्मसात करने की सूझ जितनी अधिक छायाकार में होगी, सुंदर से अति सुंदर घटित होगा। इसीलिए कहूं, छायांकन अन्वेषण कला है। जो छायाकार जिंदगी को, व्यक्ति को जितना अधिक बारीकी से भांत भांत की अर्थ छटाओं में देखने की कला दृष्टि रखेगा, वही सार्थक और सुंदर स्थिर और चलायमान चित्र सिरज सकेगा।


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