ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Sunday, December 30, 2018
'नर्मदे हर'

दैनिक नवज्येाति में...

Thursday, December 13, 2018
"लीलटांस" में प्रकाशित इंटरव्यू

Wednesday, December 12, 2018
कविता देवै दीठ-मीठेस निरमोही

Thursday, November 29, 2018
दिनेश ठाकुर- आजकल, सितंबर 2009

दुष्यंत-"आजकल", जुलाई 2001

यादवेंद्र शर्मा "चंद्र" - आजकल-नवम्बर 1993

दीठ रै पार

Sunday, November 25, 2018
नर्मदे हर - अमृत लाल वेगड़ जी की प्रतिक्रिया

कश्मीर से कन्याकुमारी-अमृत लाल वेगड़ जी का पत्र

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