ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.
...तो आइये, हम भी चलें...
Tuesday, January 4, 2022
यात्रा वृतान्त "आंख भर उमंग" की समीक्षा
आज दैनिक नवज्योति में सुधि आलोचक प्रो. अखिलेश कुमार शंखधर जी ने लिखी है यात्रा वृतान्त "आंख भर उमंग" की यह समीक्षा। आभार!
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