ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Tuesday, January 18, 2022

यायावरी तीन छंद-कश्मीर से कन्याकुमारी, नर्मदे हर और आँख भर उमंग

राजस्थान साहित्य अकादमी की पत्रिका 'मधुमती' के जनवरी 2022 अंक में यात्रा वृतान्त 'कश्मीर से कन्याकुमारी', 'नर्मदे हर' और 'आँख भर उमंग' के आलोक में यह शोधपूर्ण आलेख सुधि समालोचक श्री कृष्णबिहारी पाठक ने लिखा है।

....सुखद लगता है, जब आपके लिखे की कूंत होती है...
















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