ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Monday, October 20, 2025

संगीत के छलकते माधुर्य में जीवन उजास का संधान

 'जागरण' में आज..."दीपावली घनीभूत अंधकार से लड़ने का सृजन पर्व है। दियों की रोशनी से घर-आंगन जब सज उठते हैं तब मन मयूर भी गा उठता है।

...दीपावली अंधकार से मुक्ति का पर्व ही नहीं है, बीत गया और जो रीत गया उससे मुक्त हो नया कुछ रचने का उजास—पर्व ही तो है! आईए, इस पर्व पर संगीत के छलकते माधुर्य की रागों में जीवन के उजास का संधान करें।"

दीपावली के पावन पर्व की आप—सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
दैनिक जागरण, 20 अक्टूबर 2025


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