ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Monday, October 6, 2025

'कलाओं की अन्तर्दृष्टि' पर डॉ.राधावल्लभ त्रिपाठी

 'कलाओं की अन्तर्दृष्टि' पर—

संस्कृत को आधुनिकता का संस्कार देने वाले मर्मज्ञ विद्वान, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान और श्री लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली तथा डॉ. हरिसिंह गौड़ विश्वविद्यालय, भोपाल के पूर्व कुलपति डॉ.राधावल्लभ त्रिपाठी 



No comments:

Post a Comment