ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Monday, December 5, 2022

कथक का अंतर्मन आलोक



कलाओं में हिंदी में अच्छी बल्कि कहूं स्तरीय पुस्तकों का अभी भी अभाव है। संगीत, नृत्य, नाट्य, चित्रकला पर पुस्तकें हैं परन्तु उनमें अधिकतर ऐसी हैं जिनमें सैद्धान्तिकी या फिर किसी कलाकार विशेष की महिमा गान से आगे कहीं कोई बढ़त नहीं है। एक बड़ा कारण शायद यह भी है कि हमारे यहां कलाकारों द्वारा अपनी कला के बारे में कुछ कहने—सुनने की परम्परा अधिक विकसित नहीं हुई है।

राजस्थान पत्रिका, 3 दिसम्बर 2022

इस दृष्टि से इधर एक किताब ने विशेष रूप से आकर्षित किया है।  इसलिए कि यह मूल हिन्दी में लिखी गयी है और इसलिए भी कि एक कलाकार ने अनुभव के आलोक में इसका लेखन किया है। पुस्तक का नाम है, 'तत्कार'। इसे लिखा है, प्रख्यात कथक नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली ने।  पुस्तक का 'तत्कार'  शीर्षक ही कथक की अन्तर्यात्रा कराने वाला है। प्रेरणा लिखती है 'तत्कार कथक का अनदेखा  रोचक और अद्भुत हिस्सा है। नृत्य में पैर चल रहे हैं। घुँघरू से निकलती ध्वनि। पर नर्तक का इस पर ऐसा नियंत्रण कि सौ से अधिक घुँघरू भी बंधे हों तब भी वह केवल एक घुँघरू की आवाज का भान करा देता है।'  कथक  से जुड़े ऐसे ही विरल भाव—भव का सौंदर्य कहन है,  यह पुस्तक।

पुस्तक में कथक को संपूर्ण भाषा से अभिहित करते इस नृत्य से जुड़ी शब्दावलियों का मर्म है। अनुभूति की आंच पर पके कला जीवन संदर्भ हैं और है बंधे बंधाए ढर्रे को तोड़ती इस नृत्य की व्यावहारिकी। पुस्तक कथक से जुड़ी बंद गांठे भी जैसे खोलती है, 'शास्त्रीय परम्पराएं इतिहास को बिसराती नहीं वरन् साथ—साथ लिए चलती है और उसमें सम—सामयिक जोड़ती भी जाती है।'  स्वयं प्रेरणा श्रीमाली ने अपने गुरु कुंदनलाल गंगानी से सीखे हुए की अंतर्मन सूझ से बढ़त करते निरंतर प्रयोग किए हैं। वह लिखती है, पूरे उत्तर भारत का कथक अकेला ऐसा नृत्य है जो अपने अंदर एक भरपूर संगीतात्मकता लिए है। यह भी कि कथक का भाव पक्ष व्यक्ति के दैनिक जीवन से सर्वाधिक निकट है और यह भी कि कथक परंपरा में गुरु पद तभी हासिल होता है जब अमूर्तन में नई रचनाएं की जाए ।

'तत्कार' में प्रेरणा श्रीमाली की डायरी के पन्ने विचार—उजास है। यहां नृत्य सम्राट उदय शंकर की जीवनी और मार्था ग्राहम डांस कंपनी के कार्यक्रम आलोक में देह के उठान, झुकाव और लचीलेपन से जुड़े उनके संदर्भ या फिर कथक में 'सलामी' जैसे टूकड़े या प्रस्तुति की निर्थकता में एक कलाकार के अंतर्मन को बांचा जा सकता है। महती यह है कि यहां पढ़े—सीखे के साथ खुद उनकी स्थापनाएं हैं, मसलन हजारों बार एक ही बोल, एक ही हस्तक, एक ही पैर का निकास और एक ही मुद्रा का दोहराव उस स्तर तक चलता है जहां पहुंच कर—शरीर—शरीर न रहकर मुद्रा और हस्तकों में रूपान्तरित हो जाता है।  यहीं से उपज पैदा होती है। स्वतंत्र और मौलिक।

मेरी नजर में किसी कलाकार द्वारा अपनी अनुभूति के आलोक में स्वयं द्वारा हिंदी में लिखी यह पहली ऐसी पुस्तक है जिसमें कथक के बहाने भारतीय कला से जुड़ी संस्कृति को गहरे से गुना और बुना गया है। और इससे भी महत्वपूर्ण पक्ष इस पुस्तक का यह है कि यहां कथक के अमूर्तन जैसे विषयों के साथ उससे जुड़ी संगीतात्मकता और शब्दावलियों के अंतर्निहित में नृत्य की सृजनशीलता से जुड़ी चुनौतियों पर विमर्श की नई राहें हैं।

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