ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Saturday, December 31, 2022

बनी रहे जीवन में उत्सवधर्मिता

वर्ष आज बीत रहा है। कल नए वर्ष का सूर्य उदित होगा। कैलेंडर बदल जाएगा। सबकुछ नया होगा। आइए , बीते वक्त की तमाम कड़वाहटों को भुलाते साहित्य, संगीत, नृत्य, चित्रकला आदि कलाओं में रमें। मूल्य-मूढ़ होते जा रहे इस समय में बचेगा वही जो रचेगा।  

कलाएं काल के अनन्तर अपना अलग समय गढ़ती है। व्यक्ति में देखने, विचारने, चीजों और समय को परखने की दीठ कहीं से मिलती हैं तो कलाओं से ही मिलती है। बल्कि कहूँ, कलाओं का प्रभाव सूक्ष्म, अस्पष्ट होता है, पर सर्वव्यापी होता है। इसलिए यह जरूरी है, कुछ ऐसे प्रयास निरन्तर हों, जिनके आलोक में हम सही मायने में सांस्कृतिक हो सकें। ऐसे जिनसे जीवन में उत्सवधर्मिता बनी रहे। 

राजस्थान पत्रिका, 31 दिसम्बर, 2022

संयोग देखिए, कलाओं के समय को अनुभूत करते ही आप सबसे यह संवाद यहां हो रहा है।  कल की ही बात है। जबलपुर में था। एक सांझ धानी गुंदेचा के धुव्रपद गान की थी। वह गा रही थी, 'महाकाल महादेव धूर्जटी शुलपंचवादन प्रसन्न नेत्र महाकाल...'। लगा समाधिस्थ शिव की अर्चा में जतन से शब्द सहेज वह स्वरों की जैसे माला पिरो रही थी। 

अज्ञेय ने कभी वत्सल निधि की स्थापना और लेखक यात्राओं की पहल इसलिए की कि साहित्य-संस्कृति से जुड़े अतीत से हम पुनर्नवा हों। 

ब.व. कारन्त से उनसे  सीखे एक शिष्य ने अपनी समस्या बताई, इतने बरस हो गए नाटक करते पर प्रसिद्धि नहीं मिली। कारन्त ने ब्लैक बोर्ड पर लिखा, प्रसिद्धि। कहा, थोड़े प्रयासों से बहुत आसान है यह प्राप्त करना। फिर 'प्र' हटा दिया। बोले यह जो सिद्धि है, वह प्राप्त करना जरूरी है। कर ली तो फिर प्रसिद्धि की अपेक्षा ही नहीं रहेगी।

...तो आईए, नए वर्ष में हम सिद्ध होने की ओर अग्रसर हों।  साहित्य, संगीत, नृत्य, नाट्य, चित्र कलाओं के ऐसे आयोजनों  से ही तो समृद्ध-सम्पन्न होता है समाज। सबके लिए नई उम्मीदें, आशाएं लिए नव वर्ष ऐसे ही मंगलमय होता रहे। आमीन!

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