ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Wednesday, June 28, 2023

ऑंख भर उमंग’ की समीक्षा

प्रकाशन विभाग की पत्रिका ’आजकल’ के जुलाई 2023 अंक में यात्रा संस्मरण ’ऑंख भर उमंग’ की समीक्षा संस्कृतिकर्मी, आलोचक मंजरी सिन्हा जी ने की है...




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