ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Thursday, December 12, 2024

‘बहुवचन’ में राजस्थानी भाषा का स्वरूप और शब्द सम्पदा

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की पत्रिका ‘बहुवचन’ में...राजस्थानी भाषा का स्वरूप और शब्द सम्पदा पर यह दीठ

"राजस्थानी भाषा नहीं संस्कृति है। यह ऐसी आधुनिक भाषा है, जिसमें साहित्य की सभी विधाओं में नौंवी शताब्दी से ही लिखा हुआ बहुत सारा उपलब्ध होता आ रहा है। इतिहास और संस्कृति के विरल आख्यान लिए है यह भाषा। कविन्द्र रवीन्द्र ने कभी कहा था, रवीन्द्र गीतांजलि लिख सकता है परन्तु डिंगल जैसे दोहे नहीं!

विडम्बना है, ऐसी समृद्ध, अनुपम भाषा अभी भी मान्यता की बाट जो रही है...






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