ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Thursday, December 26, 2024

तबले में जीवन छंद रचने वाले 'वाह! उस्ताद'

 तबले की स्वतंत्र सत्ता से ठीक से किसी ने परिचित कराया तो वह उस्ताद ज़ाकिर हुसैन थे। वह बजाने के लिए ही नहीं बजाते थे, तबले में रच—बस अपने को उसमें विलीन करते थे। जब भी उन्हें सुना, ताल की नई दृष्टि पाईं। गायन और दूसरे वाद्यों की संगत से जुड़े तबले में छंद गुँथाव से एक नई ताल - भाषा किसी ने सिरजी है तो वह उस्ताद जाकिर हुसैन थे। उन्होंने तबले में वार्तालाप संभव किया। राग ताल की उनकी भाषा इसलिए लुभाती थी कि वहां काल प्रवाह से साक्षात होता था।...ध्वनियों में कितने—कितने छंद वह गूंथते रहे हैं...

'दैनिक जागरण' 23 दिसम्बर 2024


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