तबले की स्वतंत्र सत्ता से ठीक से किसी ने परिचित कराया तो वह उस्ताद ज़ाकिर हुसैन थे। वह बजाने के लिए ही नहीं बजाते थे, तबले में रच—बस अपने को उसमें विलीन करते थे। जब भी उन्हें सुना, ताल की नई दृष्टि पाईं। गायन और दूसरे वाद्यों की संगत से जुड़े तबले में छंद गुँथाव से एक नई ताल - भाषा किसी ने सिरजी है तो वह उस्ताद जाकिर हुसैन थे। उन्होंने तबले में वार्तालाप संभव किया। राग ताल की उनकी भाषा इसलिए लुभाती थी कि वहां काल प्रवाह से साक्षात होता था।...ध्वनियों में कितने—कितने छंद वह गूंथते रहे हैं...
'दैनिक जागरण' 23 दिसम्बर 2024 |
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