ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Wednesday, December 25, 2024

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आलोचना पुरस्कार

पुरस्कार के लिए कभी लिखना नहीं हुआ। पर, जब किसी कृति को इस बहाने स्वीकृति मिलती है तो सुखद लगता है। 

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी को ही तो पढ़—गुन थोड़ी कुछ समझ बनी है... 









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