दैनिक जागरण—सोमवार,'सप्तरंग' में ...
"...डागर वाणी नहीं नाद—ब्रह्म है। ध्रुवपद का स्वर—लालित्य। इसमें जड़त्व नहीं है। गोपाल दास के पुत्र इमाम बख्श के पुत्र बाबा बहराम खान ने डागर वाणी में आलापचारी को अपने ढंग से निरूपित ही नहीं किया बल्कि ध्रुवपद का नवीन वह व्याकरण भी बनाया जिससे यह संगीत माधुर्य में और अधिक जीवंत हुआ। उस्ताद रहीम फहीमुद्दीन डागर को निरंतर सुना है और पाया है, वह नाद ब्रह्म से साक्षात् कराते..."
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