ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Tuesday, November 5, 2024

नाद—ब्रह्म है-डागर वाणी

 दैनिक जागरण—सोमवार,'सप्तरंग' में ...

"...डागर वाणी नहीं नाद—ब्रह्म है। ध्रुवपद का स्वर—लालित्य। इसमें जड़त्व नहीं है। गोपाल दास के पुत्र इमाम बख्श के पुत्र बाबा बहराम खान ने डागर वाणी में आलापचारी को अपने ढंग से निरूपित ही नहीं किया बल्कि ध्रुवपद का नवीन वह व्याकरण भी बनाया जिससे यह संगीत माधुर्य में और अधिक जीवंत हुआ। उस्ताद रहीम फहीमुद्दीन डागर को निरंतर सुना है और पाया है, वह नाद ब्रह्म से साक्षात् कराते..."

दैनिक जागरण, 4 नवम्बर 2024


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