ऐतरेय ब्राह्मण का बहुश्रुत मन्त्र है चरैवेति...चरैवेति. जो सभ्यताएं चलती रही उन्होंने विकास किया, जो बैठी रहीं वे वहीँ रुक गयी. जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर ठहर जाता है तो सड़ांध मारने लगता है. इसीलिये भगवान बुद्ध ने भी अपने शिष्यों से कहा चरत भिख्वे चरत...सूरज रोज़ उगता है, अस्त होता है फिर से उदय होने के लिए. हर नयी भोर जीवन के उजास का सन्देश है.

...तो आइये, हम भी चलें...

Monday, November 11, 2024

संस्कृति का उजास

पत्रिका, 9 नवम्बर 2024

भारतीय संस्कृति पर्वों में गूंथी है। गहरे और गूढ़ अर्थ इनमें समाए हैं। हिंदू कैलेंडर पृथ्वी से दिखने वाले चंद्रमा और सूर्य की गतिविधियों पर केन्द्रित है। हर मास का अपना अध्यात्म संस्कार है।परन्तु इनमें विज्ञान के संस्कार भी समाहित है। कार्तिक दामोदर मास है। दाम’ माने रस्सी और ‘उदर’यानी पेट। दामोदरष्टकम मे आता है, दधिभाण्ड फोड़ने के कारण माँ यशोदा के डर से कृष्ण ऊखल से दूर दौड़ रहे हैं। पर माँ यशोदा ने उनसे तेज दौड़कर उन्हें पकड़ ऊखल से बाँध दिया। ऐसे दामोदर भगवान को मैं प्रणाम करता हूं।

विष्णुसहस्रनाम में यह भगवान विष्णु का 367वाँ नाम है। दामोदर माने वह जिसके हृदय में ब्रह्माण्ड बसता है। कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से पूर्णिमा तक नदी स्नान अथवा घर में ही जल्दी उठ पवित्र नदियों के ध्यान—ज्ञान, दीपदान का महत्व है। ज्योतिष—विज्ञान कहता है, इस माह सभी को प्रकाश देने वाले सूर्य अपनी नीच राशि तुला में रहते हैं। इससे प्रकाश का क्षय हो नकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। दीपक जलाने और ध्यान—ज्ञान से सर्वत्र सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। आयुर्वेद के अनुसार इस समय वायु की रुक्षता कम हो जाती है। चन्द्रमा का बल बढ़ जाता है। चन्द्र की सौम्य एवं स्निग्ध किरणों का जल शरीर—अंग प्रवाह सुधारकर मन को उमंग से भरता है। चरक संहिता में कार्तिक मास के इस जल को "हंसोदक" माने अमृत समान माना गया है। ब्रह्म मुहूर्त में कार्तिक माह में स्नान का यही रहस्य है।

कार्तिक पूर्णिमा भी तो महाकार्तिकी है। इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासर का वध किया। त्रिपुरासर ने तीनों लोकों में त्राही त्राही मचा रखी थी। पुराण कथाओं मे आता है, भगवान शिव ने असंभव रथ पर सवार हो त्रिपुरासर का वध किया। सूर्य—चंद्र इसके पहिए थे। सृष्टा सारथी बने। श्रीहरि बाण और अग्नि नोक बनी।

वासुकी धनुष की डोर, और मेरूपर्वत धनुष बने थे। इंद्र, वरुण, यम, और कुबेर जैसे लोकपाल इस रथ के घोड़े बने। तमिल साहित्य में आता है,युद्धक्षेत्र में ब्रह्मा और विष्णु भी कुछ नहीं कर पा रहे थे। तब एक क्षण आया जब त्रिपुर यानी तीनों किले एक सीध में आ गए। शिव मुस्कुराए और किले जलकर राख हो गए। तमिल में शिव को  "सिरिथु पुरामेरिता पेरुमन" कहा गया है। वह जिसकी मुस्कुराहट मात्र से त्रिपुरासर जलकर खाक हो गया। त्रिपुर दाह पर देवताओं ने शिव की नगरी काशी पहुंच दीप जलाए। यही देव—दीपावली कहलाई।

सिखों के पहले गुरु नानक देव जी का जन्म भी कार्तिक पुर्णिमा पर हुआ। इसलिए यह दिन प्रकाश पर्व कहा गया। कार्तिक पूर्णिमा पर ही भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार ले हयग्रीव का वध किया। कथा आती है, सृष्टि रचयिता ब्रह्मा के निद्रामग्न होने पर हयग्रीवासुर वेदों को चुरा समुद्र में ले गया। सृष्टि अज्ञान के अंधकार में डूब गई। नारायण ने तब मत्स्य रूप धारण कर उसका वध किया। वेदों को मुक्त कराया। इसी अवतार में उन्होंने जल प्रलय से भी पृथ्वी को बचाया। वह मछली बन संसार के प्रथम पुरुष मनु के कमंडल में आए और उनसे संसार को बचाने के लिए बड़ी नाव का निर्माण करने को कहा। इस नाव पर सवार होकर ही बाद में मनु सप्त ऋषियों, बीजों, पशु-पक्षियों के जोड़ों संग सुरक्षित हुए। भगवान विष्णु ने बड़ी मछली बनकर मनु की बनाई नाव के निकट आकर वासुकि नाग की रस्सी से जल प्रलय से उन्हें बाहर सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया। तो कहें, भारतीय संस्कृति का उजास लिए है कार्तिक मास।


No comments:

Post a Comment